नई दिल्ली, 19 अगस्त 2025। Zero Tariff: भारत और चीन के बीच ‘जीरो टैरिफ’ व्यापार समझौते की संभावना कई कारणों से जटिल बनी हुई है। भारत अपनी अर्थव्यवस्था और रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए चीन के साथ पूर्ण रूप से मुक्त व्यापार समझौते पर सहमति जताने में हिचक रहा है। इसका प्रमुख कारण भारत का चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा है, जो वित्त वर्ष 2024 में 113.45 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
भारतीय बाजार में सस्ते चीनी सामानों की बाढ़ से स्थानीय उद्योगों, खासकर छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को नुकसान का डर है। इसके अलावा, कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में आयात खोलने से भारत के किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है। 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत ने चीनी निवेश और ऐप्स पर सख्ती की है, जिससे दोनों देशों के बीच भरोसे की कमी बनी हुई है।
भारत अपनी आपूर्ति श्रृंखला को चीन पर निर्भरता कम करने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘चीन+1’ रणनीति पर जोर दे रहा है। ऐसे में जीरो टैरिफ समझौता भारत के लिए जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि यह चीनी सामानों को भारतीय बाजार में बिना किसी शुल्क के प्रवेश की अनुमति देगा। दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने की धमकी ने स्थिति को और जटिल कर दिया है।
यह टैरिफ भारत के रूस से तेल खरीदने के जवाब में लगाया गया है, जिसे ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने वाला बताया। इस टैरिफ से भारत के निर्यात, खासकर फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल्स और जेम्स-ज्वैलरी जैसे क्षेत्रों को भारी नुकसान हो सकता है, जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह टैरिफ भारत को रूस और चीन के साथ रणनीतिक रूप से और करीब ला सकता है, जिससे अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव बढ़ सकता है।भारत अब वैकल्पिक बाजारों की तलाश और व्यापार विविधीकरण पर ध्यान दे रहा है, ताकि इन टैरिफों के प्रभाव को कम किया जा सके।
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