नई दिल्ली, 3 अगस्त 2025। World Demography: पिछले एक दशक में वैश्विक धार्मिक जनसांख्यिकी में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2020 के बीच चार देशों—यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और उरुग्वे में ईसाई आबादी बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक हो गई है। इस दौरान, ईसाई धर्म को मानने वालों की वैश्विक हिस्सेदारी 30.6% से घटकर 28.8% हो गई, जबकि भारत में ईसाई आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। यह बदलाव धार्मिक स्विचिंग, जनसांख्यिकीय रुझान और सामाजिक-आर्थिक कारकों का परिणाम है। वैश्विक स्तर पर ईसाई आबादी में कमी2010 में, दुनिया भर में 124 देशों में ईसाई बहुसंख्यक थे, जो 2020 तक घटकर 120 रह गए।
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यूनाइटेड किंगडम में ईसाई आबादी 49%, ऑस्ट्रेलिया में 47%, फ्रांस में 46% और उरुग्वे में 44% तक सिमट गई। ऑस्ट्रेलिया में सबसे तेज गिरावट (20%) देखी गई, जबकि चिली और उरुग्वे में क्रमशः 18% और 16% की कमी आई। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में भी ईसाई आबादी में 14% की कमी दर्ज की गई। प्यू रिसर्च के अनुसार, इस गिरावट का मुख्य कारण धार्मिक स्विचिंग है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग, विशेष रूप से युवा, ईसाई धर्म छोड़कर धर्मनिरपेक्ष (unaffiliated) हो रहे हैं। वैश्विक स्तर पर हर एक व्यक्ति जो ईसाई बनता है, उसके मुकाबले तीन लोग इस धर्म को छोड़ रहे हैं। इसके अलावा, निम्न जन्म दर और बढ़ती उम्र की आबादी ने भी पश्चिमी देशों में ईसाई जनसंख्या को प्रभावित किया है।
यूरोप और अन्य पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता (secularism) और नास्तिकता (atheism) का बढ़ता प्रभाव भी एक बड़ा कारक है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम में धार्मिक रूप से असंबद्ध (religiously unaffiliated) लोगों का अनुपात बढ़कर क्रमशः 30% और 28% हो गया है। उप-सहारा अफ्रीका में ईसाई आबादी में वृद्धि (31% तक) देखी गई है, जो उच्च जन्म दर और युवा आबादी के कारण है, लेकिन यह वैश्विक कमी को संतुलित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। भारत में ईसाई आबादी का उदयभारत में स्थिति इसके विपरीत है। 2011 के जनगणना के अनुसार, भारत में ईसाई आबादी 2.34% थी, जो लगभग 2.4 करोड़ थी।
हाल के अनुमानों (2013-2019) के अनुसार, यह संख्या बढ़कर लगभग 3 करोड़ हो गई है। प्यू रिसर्च के अनुसार, भारत में ईसाई धर्म को अपनाने की दर में वृद्धि हुई है, खासकर दलित, आदिवासी और मजहबी सिख समुदायों में। दक्षिण भारत (केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश) और पूर्वोत्तर राज्यों (नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर) में ईसाई आबादी का अनुपात राष्ट्रीय औसत (2.3%) से अधिक है। उदाहरण के लिए, मणिपुर में 1951 में ईसाई 12% थे, जो 2011 तक बढ़कर 41.29% हो गए। भारत में ईसाई धर्म की वृद्धि के पीछे कई कारण हैं। पहला, मिशनरी गतिविधियों और छोटे चर्चों की सक्रियता, जो सरकारी रिकॉर्ड में अक्सर दर्ज नहीं होती। दूसरा, सामाजिक-आर्थिक कारक, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, जो ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों और अस्पतालों के माध्यम से उपलब्ध होती है।
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तीसरा, दलित और आदिवासी समुदायों में धर्म परिवर्तन, जो सामाजिक भेदभाव और आर्थिक पिछड़ेपन से मुक्ति की तलाश में हैं। प्यू रिसर्च के 2015 के सर्वेक्षण में पाया गया कि 21% भारतीय ईसाइयों ने अनुसूचित जाति (SC) की पहचान की, जबकि जनगणना में यह विकल्प उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण ईसाई आबादी का कुछ हिस्सा कम दर्ज हो सकता है।
तेजी से बढ़ रहा इस्लाम
वैश्विक स्तर पर, इस्लाम सबसे तेजी से बढ़ता धर्म है, जो 2010 से 2020 तक 34.7 करोड़ अनुयायी जोड़कर 25.6% वैश्विक आबादी तक पहुंच गया। इसके विपरीत, ईसाई धर्म की वृद्धि 12.2 करोड़ रही, लेकिन इसका वैश्विक हिस्सा कम हुआ। भारत में, हिंदू और इस्लाम के बाद ईसाई धर्म तीसरा सबसे बड़ा धर्म है।
2050 तक, प्यू रिसर्च का अनुमान है कि भारत में ईसाई आबादी 3.5 करोड़ तक पहुंच सकती है, हालांकि यह अभी भी कुल आबादी का एक छोटा हिस्सा रहेगा। भारत में ईसाई धर्म की वृद्धि ने कुछ हिंदू संगठनों में चिंता पैदा की है, जो इसे जनसांख्यिकीय असंतुलन के रूप में देखते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह वृद्धि सामाजिक-आर्थिक कारकों और व्यक्तिगत पसंद से प्रेरित है, न कि किसी बड़े संगठित अभियान का परिणाम। इसके बावजूद, धर्म परिवर्तन को लेकर भारत के नौ राज्यों में सख्त कानून लागू हैं, जो मिशनरी गतिविधियों को सीमित करते हैं।
पिछले दस वर्षों में वैश्विक धार्मिक जनसांख्यिकी में बड़ा बदलाव आया है। जहां पश्चिमी देशों में ईसाई आबादी धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक स्विचिंग के कारण सिकुड़ रही है, वहीं भारत जैसे देशों में सामाजिक-आर्थिक कारकों और मिशनरी प्रयासों के कारण ईसाई आबादी बढ़ रही है। यह बदलाव न केवल धार्मिक पहचान, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता को भी प्रभावित कर रहा है। भारत में, ईसाई समुदाय की वृद्धि एक आधुनिक और समावेशी समाज की तलाश को दर्शाती है, जबकि वैश्विक स्तर पर धर्मनिरपेक्षता का बढ़ता प्रभाव धार्मिक परिदृश्य को नया रूप दे रहा है।
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