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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा: स्वास्थ्य कारण या राजनैतिक दबाव?

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भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार देर रात अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य समस्याओं और चिकित्सकीय सलाह का पालन करना बताया है। यह इस्तीफा संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन के बाद आया, जिसके दौरान धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया था। उनके इस अप्रत्याशित कदम ने राजनैतिक गलियारों में हलचल मचा दी है और कई तरह की अटकलों को जन्म दिया है।74 वर्षीय जगदीप धनखड़ ने 2022 में भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, लेकिन स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया।

अपने इस्तीफे के पत्र में, जो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित था, धनखड़ ने लिखा, “स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूँ, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार है।” उन्होंने राष्ट्रपति मुर्मू के “अटूट समर्थन” और उनके साथ “सौहार्दपूर्ण कार्य संबंध” के लिए आभार व्यक्त किया। इसके साथ ही, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मंत्रिपरिषद के सहयोग को “अमूल्य” बताया और कहा कि इस दौरान उन्हें बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला।

धनखड़ ने संसद सदस्यों के प्रति भी अपनी कृतज्ञता व्यक्त की, जिनसे उन्हें “गर्मजोशी, विश्वास और स्नेह” मिला, जो उनके अनुसार “उनके दिल में हमेशा बस्ता रहेगा।”धनखड़ ने अपने पत्र में भारत की “उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति” और “अभूतपूर्व विकास” की सराहना की और कहा कि इस “परिवर्तनकारी युग” में सेवा करना उनके लिए गर्व की बात रही। उन्होंने भारत के वैश्विक उभार और उपलब्धियों पर गर्व जताते हुए देश के उज्ज्वल भविष्य में अपनी अटूट आस्था व्यक्त की।हालांकि, यह इस्तीफा कई कारणों से चौंकाने वाला है। कुछ ही दिन पहले, 10 जुलाई को, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आयोजित एक सम्मेलन में धनखड़ ने कहा था कि वह 2027 तक अपने पद पर बने रहेंगे, “जब तक कि ईश्वरीय हस्तक्षेप न हो।”

इस बयान के बाद उनके अचानक इस्तीफे ने कई सवाल खड़े किए हैं। राजनैतिक विश्लेषकों और विपक्षी नेताओं ने इस पर संदेह जताया है कि क्या यह निर्णय केवल स्वास्थ्य कारणों से लिया गया है या इसके पीछे कोई राजनैतिक दबाव है।कांग्रेस सांसद अतुल लोंढे पाटिल ने कहा, “अगर यह वास्तव में स्वास्थ्य कारणों से था, तो इस्तीफा संसद सत्र शुरू होने से पहले या बाद में दिया जा सकता था। ऐसा नहीं है कि उनकी तबीयत रातोंरात बिगड़ गई। शायद वह कोई स्टैंड लेना चाहते थे और उन्हें ऐसा करने से रोका गया।” सीपीआई सांसद पी. संदोष कुमार ने भी इसे “अप्रत्याशित” बताते हुए कहा कि यह “किसी असंतोष” का परिणाम हो सकता है।

वहीं, कांग्रेस सांसद पी. चिदंबरम और शिवसेना यूबीटी नेता आनंद दुबे ने धनखड़ के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ दीं, लेकिन इस्तीफे के समय पर सवाल उठाए।धनखड़ का कार्यकाल कई मायनों में चर्चित रहा। पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल के रूप में, उन्होंने तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ कई मुद्दों पर तीखी नोकझोंक की थी। उपराष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने किसानों के मुद्दों पर खुलकर बात की और दिसंबर 2024 में किसानों के नए आंदोलनों के दौरान सरकार और किसानों के बीच संवाद की वकालत की थी। इसके अलावा, उन्होंने राज्यसभा में अपनी भूमिका को लेकर भी सुर्खियाँ बटोरीं, खासकर जब दिसंबर 2024 में विपक्ष ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी, जिसे उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने खारिज कर दिया था।

धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब उपराष्ट्रपति के पद के लिए 60 दिनों के भीतर चुनाव कराना होगा, जैसा कि संविधान में प्रावधान है। इस दौरान, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह अस्थायी रूप से सदन की कार्यवाही का संचालन करेंगे। धनखड़ का यह कदम भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, और अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राष्ट्रपति इस इस्तीफे को स्वीकार करती हैं या नहीं, और अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा।

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