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वंतारा पर गंभीर आरोप, सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
नई दिल्ली, 6 सितंबर 2025। Vantara Investigation: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के जामनगर में रिलायंस फाउंडेशन द्वारा संचालित वंतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र (ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर) की गतिविधियों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है। यह आदेश 25 अगस्त 2025 को जस्टिस पंकज मिठाल और जस्टिस पी.बी. वराले की पीठ द्वारा दो जनहित याचिकाओं (PILs) की सुनवाई के दौरान दिया गया।
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याचिकाओं में वंतारा पर भारत और विदेशों से जानवरों, विशेष रूप से हाथियों, के अवैध अधिग्रहण, वन्यजीव संरक्षण कानूनों का उल्लंघन, जानवरों के साथ दुर्व्यवहार, वित्तीय अनियमितताओं और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों की गंभीरता को देखते हुए एक स्वतंत्र जांच के लिए SIT का गठन किया, जिसके प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर हैं। SIT में उत्तराखंड और तेलंगाना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राघवेंद्र चौहान, पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त हेमंत नगराले और अतिरिक्त आयुक्त (सीमा शुल्क) अनीश गुप्ता शामिल हैं।
SIT की तीन दिवसीय जांच शुरू
SIT ने 4 सितंबर 2025 से वंतारा केंद्र की तीन दिवसीय जांच शुरू की। पैनल ने जामनगर में साइट का दौरा किया और केंद्र के संचालन, जानवरों के अधिग्रहण, और वन्यजीव संरक्षण कानूनों के अनुपालन की पड़ताल शुरू की। जांच का मुख्य फोकस एक हाथी, महादेवी, के कोल्हापुर के एक मंदिर से जुलाई 2025 में वंतारा में स्थानांतरण पर उठे विवाद पर है।
इसके अलावा, SIT को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, CITES (कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज), आयात-निर्यात कानूनों, और पशु चिकित्सा देखभाल के मानकों की जांच करने का निर्देश दिया गया है। रिलायंस फाउंडेशन ने एक बयान जारी कर कहा कि वंतारा SIT को पूर्ण सहयोग देगा। फाउंडेशन ने स्पष्ट किया कि वह सभी वैधानिक आवश्यकताओं का पालन करता है और जांच में पारदर्शिता बनाए रखेगा। सुप्रीम कोर्ट ने SIT को 12 सितंबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है, जिसमें किसी भी उल्लंघन की स्थिति में तथ्यों को उजागर करने की अपेक्षा की गई है।
विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
वंतारा के खिलाफ दायर PILs में मीडिया और सोशल मीडिया की खबरों के साथ-साथ NGOs और वन्यजीव संगठनों की शिकायतों का हवाला दिया गया। याचिकाकर्ता, जिनमें वकील जया सुकिन शामिल हैं, ने आरोप लगाया कि वैधानिक प्राधिकरण और अदालतें इन उल्लंघनों पर कार्रवाई करने में असमर्थ या अनिच्छुक हैं। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि याचिकाओं में ठोस सबूतों का अभाव है, लेकिन आरोपों की गंभीरता को देखते हुए स्वतंत्र जांच जरूरी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह जांच न केवल वंतारा के संचालन को पारदर्शी बनाएगी, बल्कि भारत में वन्यजीव संरक्षण और निजी पुनर्वास केंद्रों के नियमन पर भी व्यापक प्रभाव डालेगी। कुछ जानकारों ने इसे वन्यजीव संरक्षण के लिए एक ऐतिहासिक कदम बताया, जबकि अन्य ने इसे निजी संस्थानों पर बढ़ते नियामक दबाव का हिस्सा माना।
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