लखनऊ, 25 अक्टूबर 2025। UP Pollution: फसल अवशेष (पराली) जलाने की घटनाएं उत्तर प्रदेश में तेजी से बढ़ रही हैं, जो दिल्ली-एनसीआर की हवा को फिर से जहरीला बनाने का खतरा पैदा कर रही हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि किसान नोटिसों और मुकदमों के डर से अछूते हैं। सितंबर-अक्टूबर 2025 में UP सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन गया है, जहां पराली जलाने की संख्या ने पंजाब-हरियाणा को पीछे छोड़ दिया।
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विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यही सिलसिला चला तो सर्दियों में सांस लेना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि ये धुंध (स्मॉग) का प्रमुख कारण है। ICAR-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) के CREAMS बुलेटिन (5 अक्टूबर 2025) के अनुसार, 15 सितंबर से 5 अक्टूबर तक छह उत्तरी राज्यों में कुल 210 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 95 मामले सामने आए, उसके बाद हरियाणा (88), पंजाब (7), राजस्थान (8) और अन्य।

मथुरा जिले ने UP में लीड ली, जहां सबसे अधिक आगजनी हुई। 22 अक्टूबर की रिपोर्ट में मथुरा को नंबर वन बताया गया, जिसके बाद दो अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। वहीं, 1 से 14 अक्टूबर के बीच UP में 158 फायर इंसिडेंट्स रिकॉर्ड हुए, जो MP (70) से ज्यादा थे। पंजाब (39) और हरियाणा (9) में भारी गिरावट आई, लेकिन UP में 283% की तेजी देखी गई।किसान नोटिस-मुकदमों से क्यों नहीं डर रहे?
रिपोर्ट बताती है कि सख्ती के बावजूद जागरूकता की कमी और वैकल्पिक तरीकों (जैसे हैपी सीडर मशीन) की अनुपलब्धता मुख्य कारण हैं। UP सरकार ने 9,000 से ज्यादा नोडल ऑफिसर्स तैनात किए, लेकिन ग्रामीण स्तर पर प्रभावी नहीं। एक किसान ने कहा, “पराली साफ न करने से अगली फसल प्रभावित होती है, नोटिस आते हैं लेकिन कार्रवाई कम।” ICAR के अनुसार, 2018 से 2024 तक कुल 75.6% कमी आई थी, लेकिन 2025 में UP-MP जैसे राज्य नई समस्या बन रहे हैं। इसका असर दिल्ली-NCR पर पड़ रहा है।
AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) पहले से खराब है, और पराली जलाने से PM2.5 कण बढ़ जाते हैं, जो फेफड़ों और हृदय रोगों का खतरा बढ़ाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बायो-डीकंपोजर स्प्रे और सब्सिडी वाली मशीनें बढ़ानी होंगी। केंद्र सरकार ने 2024-25 में 1,000 करोड़ का फंड आवंटित किया, लेकिन UP में वितरण धीमा। हरियाणा ने 95% कमी हासिल की, जहां किसानों को प्रोत्साहन दिया गया।
UP को भी यही मॉडल अपनाना चाहिए। पर्यावरण मंत्रालय ने चेतावनी जारी की है कि 1 अक्टूबर से 30 नवंबर तक पीक पीरियड में निगरानी बढ़ाई जाए। ड्रोन सर्विलांस और सैटेलाइट डेटा से ट्रैकिंग हो रही, लेकिन जमीनी स्तर पर किसानों को शिक्षित करना जरूरी। अगर UP ने कदम नहीं उठाए तो स्मॉग सीजन में हेल्थ इमरजेंसी हो सकती है। समय रहते वैकल्पिक कृषि प्रथाओं को अपनाएं, वरना हवा का संकट गहरा जाएगा।
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