लखनऊ, 9 सितंबर 2025। UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती के हालिया ऐलान ने सियासी समीकरण को नया मोड़ दे दिया है। मायावती ने आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर संगठन को मजबूत करने और सभी वर्गों को जोड़ने की रणनीति पर जोर दिया है। इसके बाद बस्ती जिले में बसपा की एक बैठक में बड़ी संख्या में लोग, खासकर अल्पसंख्यक समुदाय, समाजवादी पार्टी (सपा) छोड़कर बसपा में शामिल हुए हैं। यह बदलाव यूपी की राजनीति में बसपा की वापसी का संकेत देता है।
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बस्ती के अमानाबाद गांव में आयोजित बसपा भाईचारा कमेटी की बैठक में पूर्व लोकसभा प्रत्याशी लवकुश पटेल की अध्यक्षता में संगठन के विस्तार पर चर्चा हुई। जिला संयोजक के.सी. मौर्य ने कहा कि मायावती ने हमेशा दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए काम किया है। उनकी सरकार में सड़कों का जाल बिछा, कांशीराम आवास योजना शुरू हुई और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत किया गया। इस दौरान शहाबुद्दीन शाह के नेतृत्व में कई लोग सपा छोड़कर बसपा में शामिल हुए।
मायावती की नई रणनीति दलित-ओबीसी गठजोड़ पर केंद्रित है। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले वह सपा और भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं। लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस के पीडीए फॉर्मूले ने बसपा को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन अब मायावती नई सोशल इंजीनियरिंग के जरिए वापसी की राह तलाश रही हैं। उनकी रणनीति में पिछड़े वर्गों को जोड़ना और भाईचारा कमेटियों के माध्यम से जनाधार बढ़ाना शामिल है।
हालांकि, बसपा के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। हाल के उपचुनावों में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद मायावती ने संगठन में बदलाव और कमियों को दूर करने के निर्देश दिए। वह दलित और अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट करने के साथ-साथ अन्य समुदायों को भी पार्टी से जोड़ने की कोशिश कर रही हैं। यदि यह रणनीति सफल रही, तो सपा और भाजपा के लिए 2027 में चुनौती बढ़ सकती है।
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