लखनऊ, 4 अक्टूबर 2025। UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीतिक बिसात पर एक बड़ा हड़कंप मचने वाला है। यहां पंजीकृत 127 छोटे-बड़े राजनीतिक दलों का भविष्य संकट में घिर गया है। कारण? इन दलों ने पिछले छह वर्षों में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में उतरकर तो जमकर जंग लड़ी, लेकिन चुनावी खर्च का ब्योरा जमा करने की जिम्मेदारी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। चुनाव आयोग ने अब इन सभी दलों को नोटिस थमाते हुए कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है।
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आयोग के निर्देशानुसार, इन दलों को शुक्रवार तक लिखित रूप से अपना पक्ष रखने और आवश्यक दस्तावेज मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय में जमा करने का मौका दिया गया था।अब मामला और गंभीर मोड़ ले चुका है। 6 से 9 अक्टूबर तक इन दलों के प्रतिनिधियों को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाएगा। आयोग ने प्रत्येक दल के लिए अलग-अलग शेड्यूल तय कर दिया है, ताकि सुनवाई सुचारू रूप से हो सके। इन सुनवाइयों के आधार पर दलों के भाग्य का फैसला होगा या तो उन्हें राहत मिलेगी या फिर उनकी पंजीकरण रद्दीकरण की कगार पर पहुंचा दिया जाएगा।
नोटिस प्राप्त करने वाले दलों की सूची में कई परिचित नाम शामिल हैं, जैसे लोकदल, नागरिक एकता पार्टी और आजाद समाज पार्टी। इसके अलावा अखंड राष्ट्रवादी पार्टी, आल इंडिया राजीव कांग्रेस पार्टी, एकलव्य समाज पार्टी, किशोर राज पार्टी, लोकगठबंधन पार्टी, मानवतावादी क्रांति दल, मनुवादी पार्टी, नैतिक पार्टी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), राष्ट्रवादी श्रमजीवी दल, राष्ट्रवादी क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय मतदाता पार्टी, राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी, सबका दल यूनाइटेड, समाज सेवक पार्टी, सर्वोदय भारत पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) और यूपी रिपब्लिकन पार्टी जैसे दल भी इस सूची का हिस्सा हैं।
चुनाव आयोग के सख्त नियमों के मुताबिक, विधानसभा चुनाव समाप्त होने के 75 दिनों के अंदर और लोकसभा चुनाव के 90 दिनों के भीतर निर्वाचन व्यय का विस्तृत ब्योरा जमा करना अनिवार्य है। साथ ही, पिछले तीन वित्तीय वर्षों के सालाना ऑडिटेड अकाउंट्स भी आयोग को उपलब्ध कराने पड़ते हैं। लेकिन इन दलों ने न तो खर्च का हिसाब दिया और न ही ऑडिट रिपोर्ट सौंपी। यह लापरवाही न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करती है। आयोग का यह कदम राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो भविष्य में चुनावी भ्रष्टाचार को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
उत्तर प्रदेश, जहां राजनीतिक दलो की फौज पहले से ही भारी संख्या में मौजूद है, वहां यह कार्रवाई कई छोटे दलों के लिए अस्तित्व का संकट बन सकती है। कई दल तो चुनावी मौसम में सक्रिय हो जाते हैं, लेकिन नियमों का पालन करने में कोताही बरतते हैं। आयोग के इस एक्शन से न केवल इन दलों को सबक मिलेगा, बल्कि अन्य पार्टियां भी सतर्क हो जाएंगी। सुनवाई के बाद आयोग जो भी निर्णय लेगा, वह पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम करेगा। फिलहाल, इन दलों के प्रतिनिधि अपनी सफाई तैयार करने में जुटे हैं, लेकिन समय कम है और दांव बड़ा। क्या ये दल बच पाएंगे या राजनीतिक नक्शे से गायब हो जाएंगे? यह तो आने वाले दिनों में ही साफ होगा।
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