लखनऊ, 7 अक्टूबर 2025। UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ आ रहा है। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव 8 अक्टूबर, यानी बुधवार को रामपुर पहुंचकर हाल ही में जेल से रिहा हुए वरिष्ठ नेता आजम खान से मुलाकात करेंगे। 23 सितंबर 2025 को 23 महीने की कैद के बाद सीतापुर जेल से बाहर आए आजम खान की रिहाई ने सपा में हलचल मचा दी है। यह मुलाकात न केवल आजम की पार्टी में वापसी का संकेत देगी, बल्कि सपा के मुस्लिम नेतृत्व में संतुलन बनाने की रणनीति को भी परिभाषित करेगी।
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रिहाई के बाद आजम खान मीडिया की सुर्खियों में छाए हुए हैं। उनके बयानों से साफ है कि वे अपनी राजनीतिक अहमियत को कमजोर नहीं पड़ने देना चाहते। लेकिन सपा के अंदर कई कयास लग रहे हैं। एक ओर आजम खान का कट्टर मुस्लिम चेहरा है, जो रामपुर और आसपास के इलाकों में मुस्लिम वोटबैंक पर मजबूत पकड़ रखता है। दूसरी ओर, सपा के अन्य मुस्लिम नेता जैसे जावेद अब्बास, नाहिद हसन आदि को डर सता रहा है कि आजम की वापसी से उनकी उपयोगिता घट सकती है। वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। तीसरी चुनौती सपा नेतृत्व के सामने है, जो इन दोनों धड़ों को साधते हुए आगामी चुनावों की तैयारी कर रहा है।

अखिलेश यादव का फोकस पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूले पर है। उन्होंने कई सार्वजनिक मंचों पर स्पष्ट किया है कि पीडीए में ‘ए’ का मतलब अगड़ा भी है, और वे सर्व समाज को एकजुट कर बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे का जवाब देना चाहते हैं। आजम की वापसी को इसी रणनीति का हिस्सा बनाया जा सकता है। अखिलेश की कोशिश है कि आजम को पार्टी में सम्मानजनक भूमिका देकर मुस्लिम समुदाय को संदेश जाए कि सपा ने उन्हें अकेला नहीं छोड़ा। साथ ही, उनके तीखे बयानों से हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण रोकने के लिए संयम बरतने की सलाह दी जा सकती है। अगर आजम पुराने तेवर दिखाते हैं, तो बीजेपी इसका फायदा उठा सकती है।
रामपुर सपा का मजबूत गढ़ रहा है, जहां आजम की लोकप्रियता से मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा आता है, लेकिन अगर उन्हें दरकिनार किया गया, तो अल्पसंख्यक मतदाताओं में नाराजगी फैल सकती है। अखिलेश जानते हैं कि संतुलन बनाना जरूरी है—एक तरफ आजम की ताकत का इस्तेमाल, दूसरी तरफ अन्य मुस्लिम नेताओं को मजबूत रखना। रिहाई के बाद अखिलेश ने खुशी जताई थी, लेकिन कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी। आजम भी पार्टी मुद्दों पर खामोश रहे। माना जा रहा है कि इस मुलाकात में अखिलेश आजम को संयमित भूमिका निभाने और पार्टी एकता पर फोकस करने की हिदायत देंगे।
यह मुलाकात सपा के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हो सकती है। बीजेपी ने इसे ‘नाटक’ बताते हुए मुस्लिम वोटरों को भ्रमित करने का आरोप लगाया है। वहीं, सपा के लिए यह अवसर है कि मुस्लिम नेतृत्व को मजबूत कर विपक्षी एकता को पुख्ता किया जाए। रामपुर से लौटने के बाद सपा की चुनावी रणनीति और स्पष्ट हो जाएगी, जो 2027 के विधानसभा चुनावों को प्रभावित करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अखिलेश का यह कदम पार्टी की आंतरिक कलह को समाप्त कर एक मजबूत विपक्ष का निर्माण करेगा।
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