बिहार में अपराध की घटनाएं हर दिन बढ़ती जा रही हैं। सड़कों पर दिनदहाड़े खून बह रहा है, लोग गोलियों से मारे जा रहे हैं और अपराधियों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि अब उन्हें पुलिस या कानून का कोई डर नहीं रह गया है। पटना से लेकर पूर्णिया तक लगातार हो रही हत्याएं राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था की तस्वीर साफ कर रही हैं।
पिछले तीन दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो सबसे पहले पटना में नामी बिजनेसमैन गोपाल खेमका की हत्या कर दी गई। फिर एक स्कूल संचालक की हत्या की खबर आई। लेकिन जो घटना सबसे ज्यादा डरावनी और दिल दहला देने वाली है, वो पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में हुई, जहां एक ही परिवार के पांच लोगों को भीड़ ने पेड़ से बांधकर जिंदा जला दिया।
300 लोगों की भीड़ ने 5 लोगों को जिंदा जलाया, पुलिस को भनक तक नहीं
रविवार की रात टेटगामा गांव में जो हुआ, उसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। गांव में रात 9 बजे पंचायत बुलाई गई, जिसमें करीब 300 लोग शामिल हुए। यहां एक परिवार की महिलाओं को ‘डायन’ बताकर उन पर तंत्र-मंत्र का आरोप लगाया गया। पंचायत के बाद गुस्साई भीड़ ने परिवार के पांच लोगों – बाबू लाल उरांव, मंजीत उरांव, सीता देवी, कातो देवी और रानी देवी – को जबरन घर से उठाया, पहले बुरी तरह पीटा और फिर पेट्रोल छिड़ककर जिंदा जला दिया।
सबसे हैरानी की बात ये है कि रात 1 बजे तक ये खौफनाक वारदात होती रही, लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। अगली सुबह जब खबर फैली तो पुलिस गांव पहुंची, लेकिन तब तक आरोपी फरार हो चुके थे। यहां तक कि पुलिस को शवों की तलाश में भी 12 घंटे लग गए।
जिंदा जलाए गए सभी लोग एक ही परिवार से थे
जिन पांच लोगों को मारा गया, उनमें तीन महिलाएं और दो पुरुष शामिल हैं। बताया जा रहा है कि गांव के ही एक शख्स रामदेव उरांव ने पंचायत बुलाकर यह आरोप लगाया था कि उसके बेटे की मौत के पीछे बाबू लाल उरांव के परिवार की महिलाओं का तंत्र-मंत्र है। इसी अंधविश्वास ने पांच बेकसूर लोगों की जान ले ली।
पुलिस की नींद में लापरवाही की इंतहा
इस घटना ने पुलिस की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस गांव में इतनी बड़ी संख्या में लोग जमा हुए, घंटों पंचायत चली, लोगों को जिंदा जलाया गया, वहां चौकीदार या खबरी तक को कोई जानकारी नहीं मिली? यह पुलिस की लापरवाही नहीं, बल्कि सोई हुई व्यवस्था की खुली पोल है।
23 नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज
पुलिस ने इस मामले में अब तक 23 नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है। तीन लोगों की गिरफ्तारी की बात सामने आई है, लेकिन पुलिस यह तक नहीं पता लगा पाई है कि भीड़ की अगुवाई किसने की और हत्या का फैसला आखिर किसने लिया। आसपास के गांवों से भी लोग पंचायत में शामिल हुए थे, जिससे जांच और भी जटिल हो गई है।
बिहार में कानून व्यवस्था पर उठ रहे सवाल
ये अकेली घटना नहीं है जो बिहार में बिगड़ते हालात को दिखा रही है। पिछले पांच महीनों में राज्य में 116 हत्याएं हो चुकी हैं। अधिकतर मामलों में आरोपी अब तक फरार हैं। वीवीआईपी इलाकों तक में गोलियां चल रही हैं और मंत्री से लेकर आम आदमी तक असुरक्षित महसूस कर रहा है।
विपक्ष लगातार नीतीश सरकार को इस मुद्दे पर घेर रहा है और आम जनता भी डर के साए में जी रही है। सवाल उठता है कि क्या बिहार में कानून का राज है या जंगलराज लौट आया है? पुलिस की लापरवाही और अपराधियों की बेलगाम हिम्मत के बीच आम आदमी खुद को सबसे ज्यादा असहाय महसूस कर रहा है।
आखिर बिहार में अपराध पर लगाम कब लगेगी?
पूर्णिया की यह घटना पूरे राज्य के लिए एक चेतावनी है। अगर अब भी सरकार और पुलिस नहीं चेती तो ना जाने कितनी और जानें इस अराजकता की भेंट चढ़ जाएंगी। बिहार में कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाना अब वक्त की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है।