भारत और ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर सरकार जहां इसे बड़ी आर्थिक उपलब्धि बता रही है, वहीं भारतीय शराब उद्योग, खासकर देसी व्हिस्की ब्रांड्स में इसकी वजह से चिंता और नाराज़गी साफ देखी जा रही है। कारण है – इस डील के बाद ब्रिटेन की महंगी स्कॉच अब भारत में सस्ती मिलने लगेगी, जिससे स्थानीय शराब कंपनियों की बिक्री और बाजार हिस्सेदारी पर असर पड़ सकता है।
स्कॉच होगी सस्ती, देसी ब्रांड्स पर असर
Sky News की रिपोर्ट के अनुसार, इस समझौते के तहत भारत स्कॉच व्हिस्की पर आयात शुल्क को 150% से घटाकर 75% करने जा रहा है। इससे पहले जो स्कॉच केवल चुनिंदा अमीरों तक सीमित थी, वह अब आम दुकानों पर भी कम कीमत में उपलब्ध हो जाएगी।
CIABC (कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहलिक बेवरेज कंपनियों) के डायरेक्टर जनरल अनंत एस अय्यर ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत में गर्म जलवायु के कारण व्हिस्की तेजी से पकती है, लेकिन स्कॉच की तरह 3 साल तक स्टोर करना जरूरी है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ती है और 30% से ज्यादा माल वाष्पित हो जाता है।
लोकल कंपनियों के लिए डबल मार
भारत भले ही दुनिया का सबसे बड़ा व्हिस्की कंज्यूमर देश है, लेकिन यहां 97% बाजार पर देसी ब्रांड्स का कब्जा है। सस्ती स्कॉच के आने से इन ब्रांड्स की पकड़ कमजोर हो सकती है। चिंता सिर्फ कीमत की नहीं है, बल्कि विदेशी ब्रांड्स की ब्रांड वैल्यू और आक्रामक मार्केटिंग भी देसी कंपनियों को पीछे धकेल सकती है।
डील के अन्य जोखिम
यह ट्रेड डील केवल शराब उद्योग तक सीमित नहीं है। ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं – अगर ये नियम कमजोर हुए, तो अन्य देश ब्रिटेन के रास्ते भारत में सस्ते प्रोडक्ट भेज सकते हैं, जिससे घरेलू उद्योग को नुकसान होगा।
वहीं, ब्रिटेन का कार्बन टैक्स भारत के स्टील और मेटल एक्सपोर्ट को महंगा बना सकता है।
सरकार का दावा बनाम ज़मीनी हकीकत
सरकार इस डील को एक्सपोर्ट और विदेशी निवेश बढ़ाने वाला समझौता बता रही है। लेकिन छोटे और मंझोले व्यवसाय, खासकर देसी शराब उद्योग, खुद को इस समझौते से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यह डील कुछ बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए तो फायदेमंद साबित हो सकती है, लेकिन स्थानीय कारोबारियों के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है।
क्या देसी ब्रांड्स डील की कीमत चुकाएंगे?
FTA का मकसद फ्री और फेयर ट्रेड होता है, लेकिन अगर उसका असर स्थानीय उद्योगों की तबाही के रूप में दिखे, तो यह घाटे का सौदा बन सकता है। सरकार को इस डील को संतुलित बनाना होगा, ताकि विदेशी ब्रांड्स को छूट देते वक्त देशी उद्यमियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके।