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नए लेबर कोड और महंगाई के खिलाफ दिल्ली में ट्रेड यूनियनों का प्रदर्शन, देशभर में मिला मिला-जुला असर

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केंद्र सरकार की नीतियों, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और नए लेबर कोड के विरोध में बुधवार को देशभर में ट्रेड यूनियनों ने भारत बंद का आह्वान किया। हालांकि राजधानी दिल्ली में इसका असर बहुत सीमित रहा। बड़े बाजार, दफ्तर और सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह सामान्य रहे, लेकिन दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध की गूंज जरूर सुनाई दी।

जंतर-मंतर पर विरोध में जुटे ट्रेड यूनियन सदस्य

अखिल भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियन परिषद (एआईसीसीटीयू) से जुड़े सदस्य बुधवार सुबह जंतर-मंतर पहुंचे और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार पर श्रमिक विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि चार नई श्रम संहिताएं (लेबर कोड्स) मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करती हैं और इससे उनका भविष्य खतरे में है।

झारखंड और केरल में दिखा बंद का असर

झारखंड के कई हिस्सों में इस हड़ताल का असर देखने को मिला। ट्रेड यूनियनों का दावा है कि कोयला, बैंकिंग और अन्य क्षेत्रों में कामकाज प्रभावित हुआ। वहीं, माकपा शासित केरल में मंगलवार की रात से ही हड़ताल शुरू हो गई, जिसके चलते कई इलाकों में पूर्ण बंद का माहौल रहा। दुकानों के शटर गिरे रहे और सड़कों पर सन्नाटा छाया रहा।

दिल्ली में बंद बेअसर, बाजारों में रौनक

दिल्ली के बड़े बाजारों में भारत बंद का कोई खास असर नहीं दिखा। दुकानें खुली रहीं, लोग खरीदारी करते दिखे और मेट्रो तथा बस सेवाएं भी सामान्य रूप से चलती रहीं। ऑफिसों में कामकाज पर भी कोई असर नहीं पड़ा। व्यापारियों ने साफ कहा कि उन्होंने इस बंद को समर्थन नहीं दिया और देशहित में अपना कारोबार जारी रखा।

अस्पतालों में काली पट्टी बांधकर जताया विरोध

सरकारी अस्पतालों में भी विरोध का तरीका थोड़ा अलग रहा। जीबी पंत, लोकनायक, सफदरजंग, अरुण आसफ अली, कलावती शरण और लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के कर्मचारियों ने काली पट्टी बांधकर काम किया और भोजनावकाश के दौरान सभा कर अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा कि सरकार की कर्मचारी विरोधी नीतियों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

किसानों और महिला संगठनों का भी समर्थन

इस हड़ताल को सिर्फ ट्रेड यूनियन ही नहीं, बल्कि कई किसान और महिला संगठनों का भी समर्थन मिला। संयुक्त किसान मोर्चा, जो पहले कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर चुका है, उसने भी इस विरोध को नैतिक समर्थन दिया। वहीं, स्वरोजगार से जुड़ी महिलाएं जैसे ‘सेवा’ (Self Employed Women’s Association) और ग्रामीण समुदायों के लोग भी प्रदर्शन में शामिल हुए।

सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम

दिल्ली पुलिस और प्रशासन की ओर से जंतर-मंतर और आस-पास के इलाकों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा और कहीं से किसी अव्यवस्था की खबर नहीं आई।

निष्कर्ष

हालांकि भारत बंद का असर पूरे देश में एक जैसा नहीं दिखा, लेकिन मजदूरों, किसानों और कर्मचारियों की आवाज एक बार फिर सड़कों पर गूंजी। यह साफ है कि नई लेबर पॉलिसियों को लेकर अभी भी देश के बड़े तबके में असंतोष बना हुआ है। सरकार के लिए यह एक संकेत है कि संवाद की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है।

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