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Trade Deal: जयशंकर ने ट्रंप को दिखाया आइना, ट्रेड डील पर भारत की अमेरिका को खरी-खरी

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नई दिल्ली, 23 अगस्त 2025। Trade Deal: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति पर कड़ा रुख अपनाते हुए भारत की स्थिति स्पष्ट कर दी है। इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में बोलते हुए, जयशंकर ने कहा कि भारत अपनी राष्ट्रीय हितों और वैश्विक हितों के लिए रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है और इस पर कोई समझौता नहीं करेगा।

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उन्होंने अमेरिका को आड़े हाथों लेते हुए सवाल उठाया कि जब चीन रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीद रहा है, तो उस पर टैरिफ क्यों नहीं लगाया गया। ट्रंप ने 7 अगस्त 2025 से भारत के निर्यात पर 25% टैरिफ और 27 अगस्त से रूस से तेल खरीद के लिए अतिरिक्त 25% टैरिफ की घोषणा की थी। इस कदम को भारत ने अपने हितों पर हमला माना। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर बातचीत जारी है, लेकिन भारत की कुछ ‘रेड लाइन्स’ हैं, खासकर किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए।

उन्होंने कहा, “हम अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस पर समझौता नहीं हो सकता।” जयशंकर ने ट्रंप के टैरिफ को गैर-व्यापारिक कारणों से लगाया गया कदम करार देते हुए इसे अस्वीकार्य बताया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “अगर आपको भारत से तेल या अन्य उत्पाद खरीदने में समस्या है, तो न खरीदें। कोई आपको मजबूर नहीं कर रहा।

यूरोप और अमेरिका भी खरीदते हैं।” विदेश मंत्री ने भारत की स्वतंत्र नीति का हवाला देते हुए कहा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेता है, न कि बाहरी दबाव में। उन्होंने भारत-चीन संबंधों पर भी टिप्पणी की और कहा कि सभी मुद्दों को एक साथ जोड़कर विश्लेषण करना गलत है। “हर समस्या की अपनी समय-सीमा और संदर्भ होता है। इसे एकीकृत प्रतिक्रिया के रूप में देखना वास्तविकता से परे है,” जयशंकर ने कहा। उन्होंने यह भी साफ किया कि भारत ने कभी भी पाकिस्तान के मुद्दों पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की है।

यह बयान भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव के बीच आया है, जहां ट्रंप प्रशासन की नीतियों को भारत ने दोहरे मापदंड का प्रतीक माना। जयशंकर का यह रुख न केवल भारत की आर्थिक स्वायत्तता को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक मंच पर देश की मजबूत कूटनीतिक स्थिति को भी रेखांकित करता है। यह घटना भारतीय विदेश नीति के दृढ़ और आत्मनिर्भर रुख को सामने लाती है।

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