बीजिंग। Tibet to Gwadar Rail Line: चीन ने तिब्बत से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर तक एक महत्वाकांक्षी रेल लाइन परियोजना की योजना बनाई है, जो भारत के लिए एक गंभीर रणनीतिक खतरा बन सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना न केवल चीन की क्षेत्रीय प्रभुत्व की महत्वाकांक्षा को दर्शाती है, बल्कि यह 2030 तक भारत के खिलाफ संभावित सैन्य कार्रवाई की तैयारी का हिस्सा भी हो सकती है। इस रेल लाइन के जरिए चीन अपनी सैन्य ताकत को तेजी से सीमा क्षेत्रों तक पहुंचाने और भारत के पड़ोस में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रहा है।
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भारत को इस खतरे से निपटने के लिए अपनी रक्षा और बुनियादी ढांचा तैयारियों को तेज करना होगा। चीन ने हाल ही में शिनजियांग-तिब्बत रेलवे कंपनी की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य तिब्बत के शिगात्से से शिनजियांग के होटान तक लगभग 2,000 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का निर्माण करना है। यह रेल लाइन अक्साई चिन जैसे विवादित क्षेत्रों से होकर गुजरेगी, जो भारत-चीन सीमा पर तनाव का एक प्रमुख केंद्र रहा है। यह परियोजना 2035 तक पूरी होने की उम्मीद है, लेकिन इसका पहला चरण, शिगात्से से पखुक्त्सो तक, 2025 तक पूरा हो सकता है।
यह रेल लाइन ल्हासा-शिगात्से रेल नेटवर्क से जुड़ेगी, जिससे चीन को तिब्बत और शिनजियांग के बीच एक रणनीतिक रेल गलियारा मिलेगा। इसके अलावा, चीन की योजना इस नेटवर्क को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक विस्तारित करने की है, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है।विशेषज्ञों के अनुसार, यह रेल लाइन चीन की ‘बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर स्ट्रैटेजी’ का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास सैन्य उपस्थिति को मजबूत करना है। यह रेल लाइन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को सैनिकों, हथियारों और उपकरणों को तेजी से सीमा तक पहुंचाने में सक्षम बनाएगी।
अक्साई चिन के पास रेल का निर्माण 1962 के भारत-चीन युद्ध की याद दिलाता है, जब चीन ने इसी क्षेत्र में सड़क निर्माण के जरिए अपनी स्थिति मजबूत की थी। इसके अतिरिक्त, यह रेल लाइन नेपाल की सीमा के साथ-साथ और डोकलाम जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के पास भी जाएगी, जिससे भारत की सामरिक स्थिति और जटिल हो सकती है। चीन की यह परियोजना केवल सैन्य दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। ग्वादर बंदरगाह तक रेल कनेक्टिविटी से चीन को हिंद महासागर तक सीधी पहुंच मिलेगी, जिससे वह पारंपरिक पश्चिमी व्यापार मार्गों पर अपनी निर्भरता कम कर सकेगा।
यह परियोजना चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है, जिसके तहत वह दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। हालांकि, इस परियोजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि बलूचिस्तान में सुरक्षा समस्याएं और तकनीकी कठिनाइयां, क्योंकि रेल लाइन कुनलुन, कराकोरम और हिमालय जैसे कठिन भूभागों से होकर गुजरेगी। भारत के लिए यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि यह रेल लाइन न केवल सैन्य गतिविधियों को बढ़ावा देगी, बल्कि भारत के पड़ोस में चीन की रणनीतिक उपस्थिति को भी मजबूत करेगी। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भारत को अपनी सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास को तेज करना होगा, विशेष रूप से लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे क्षेत्रों में।
भारतीय सेना ने पहले ही LAC पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई है, लेकिन रेल और सड़क नेटवर्क में सुधार की गति को और तेज करने की जरूरत है। साथ ही, भारत को अपने क्षेत्रीय सहयोगियों, जैसे अमेरिका और जापान, के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करना चाहिए ताकि चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला किया जा सके।विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को न केवल सैन्य बल के स्तर पर, बल्कि कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर भी मजबूत करना होगा। चीन की इस परियोजना के जवाब में भारत को अपनी सामरिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
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