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शिवपुरी: 8 साल से पुल का इंतजार, जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को मजबूर ग्रामीण

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शिवपुरी (मध्य प्रदेश): जिले की कोलारस विधानसभा के अंतर्गत आने वाले लुकवासा क्षेत्र के ग्रामीण बीते 8 सालों से एक पुल की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक उनकी यह मांग अधूरी ही है। हालात इतने खराब हैं कि करीब 15 गांवों के लोग रोजाना जान जोखिम में डालकर बहाव के बीच करई नदी को पार करने को मजबूर हैं।

हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, जिसमें एक ग्रामीण गहरे पानी में ट्रैक्टर से नदी पार करता नजर आ रहा है। यह वीडियो इलाके की जमीनी हकीकत और शासन-प्रशासन की लापरवाही को साफ तौर पर उजागर करता है।

हर साल बारिश में बढ़ती मुसीबत

लुकवासा से होकर गुजरने वाली करई नदी बरसात के मौसम में उफान पर आ जाती है, जिससे बसाई, रसोई, हरियाल, पिपरौदा, चिरौली, किशनपुर सहित करीब 15 गांवों के लोगों को अस्पताल, स्कूल और खेत तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। पुल नहीं होने के कारण ग्रामीणों को मजबूरी में खतरनाक रास्ता अपनाना पड़ता है।

बार-बार प्रस्ताव, लेकिन कोई सुनवाई नहीं

ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत स्तर से कई बार पुल निर्माण के प्रस्ताव भेजे गए, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। हर साल बरसात में यह इलाका पानी से घिर जाता है, और लोगों को ज़रूरी सेवाओं तक पहुंचना दूभर हो जाता है। ग्रामीणों का साफ कहना है कि यह रास्ता जानलेवा है, लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचा है।

बच्चों की पढ़ाई और इलाज पर भी असर

पुल नहीं होने का असर सिर्फ आवा-जाही तक सीमित नहीं है। बच्चों की पढ़ाई, बीमारों के इलाज और खेती-किसानी पर भी गंभीर असर पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि हर बार सिर्फ आश्वासन मिलते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई काम शुरू नहीं होता।

पंचायत ने जताई असमर्थता

इस मुद्दे पर पंचायत सचिव महेश ओझा ने कहा कि, “नदी पर पुल बनाना पंचायत का काम नहीं है। हमने अपनी ओर से कई बार प्रस्ताव भेजे हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।”

ग्रामीणों की सीधी मांग

इलाके के लोगों ने शासन और प्रशासन से जल्द से जल्द करई नदी पर पुल निर्माण की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि वे अब और इंतजार नहीं कर सकते। यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो कोई बड़ा हादसा हो सकता है।

कुल मिलाकर, यह मामला सिर्फ एक पुल का नहीं, बल्कि सरकारी उदासीनता और ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े संघर्ष का है। आठ सालों से जारी यह इंतजार कब खत्म होगा, इसका जवाब अभी भी अधर में है।

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