नई दिल्ली, 18 नवंबर 2025। Sheikh Hasina Extradition: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बचाने के लिए भारत के पास मजबूत कानूनी हथियार हैं। बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने 17 नवंबर 2025 को हसीना को ‘मानवता के खिलाफ अपराधों’ के लिए फांसी की सजा सुनाई। इस फैसले में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को भी मौत की सजा दी गई, जबकि पूर्व IG पुलिस चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून को 5 साल की कैद।
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ICT ने 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान कथित हत्याओं के लिए यह सजा दी। हसीना ने फैसले को ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ करार दिया। 5 अगस्त 2024 को हसीना ने इस्तीफा देकर भारत आ गईं और दिल्ली के एक सुरक्षित आवास में रह रही हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से प्रत्यर्पण की मांग की है। विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘मानवता के खिलाफ अपराधों के दोषियों को शरण देना अमित्र व्यवहार और न्याय का अपमान है।’
भारत ने जवाब दिया, ‘एक निकट पड़ोसी के रूप में हम बांग्लादेश के लोगों के हितों, शांति, लोकतंत्र, समावेशिता व स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध हैं। सभी हितधारकों से रचनात्मक संवाद जारी रखेंगे।’ 2013 की भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि भारत को अनुरोध ठुकराने का अधिकार देती है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढ़ी के अनुसार, धाराएं 6 और 8 ‘ब्रह्मास्त्र’ हैं।
ICT का फैसला बिना हसीना के पक्ष सुने सुनाया गया, जो कानूनी रूप से दोषपूर्ण है, खासकर फांसी के मामलों में आरोपी की अदालत में मौजूदगी जरूरी। धारा 6, राजनीतिक अपराध पर अपवाद धाराएं 6(1) के तहत प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है यदि अपराध ‘राजनीतिक प्रकृति’ का हो। उपधारा 2 में अपवाद हैं, जैसे गैर-इरादतन हत्या, विस्फोटक, आग्नेयास्त्र रखना या आतंकवाद, लेकिन हसीना का मामला छात्र आंदोलन दमन से जुड़ा राजनीतिक लगता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, अंतरिम सरकार का त्वरित फैसला राजनीतिक प्रतिशोध दर्शाता है। भारत का प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 की धारा 31 भी राजनीतिक अपराध पर इनकार की अनुमति देती है। धारा 7: अभियोजन का विकल्पधाराएं 7 के तहत यदि अनुरोधकर्ता देश में मुकदमा चल रहा हो, तो प्राप्तकर्ता देश इनकार कर सकता है। भारत मामले को अपने अधिकारियों के पास भेज सकता है, लेकिन अभियोजन न करने पर प्रत्यर्पण पर पुनर्विचार होगा।
धारा 8: अन्यायपूर्ण प्रत्यर्पण पर रोक
धाराएं 8(3) के तहत यदि प्रत्यर्पण ‘अन्यायपूर्ण या दमनकारी’ हो, या अनुरोध सद्भावना से न हो, तो इनकार संभव। मामला मामूली हो, समय बीत चुका हो, या सैन्य अपराध सामान्य कानून के बाहर हो। हसीना के मामले में राजनीतिक पूर्वाग्रह साफ है, जो भारत को इनकार का आधार देता। संधि के तहत अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए। ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ भारत में समान रूप से परिभाषित नहीं, जो अतिरिक्त बाधा है। भारत हसीना को राजनीतिक शरण दे सकता है, लेकिन प्रत्यर्पण से इनकार से संबंध तनावग्रस्त हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है, भारत बांग्लादेश की स्थिरता के लिए सतर्क रहेगा।
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