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Recession: अमेरिकी टैरिफ और आर्थिक मंदी ने तोड़ी कानपुर की चमड़ा टैनरियों की कमर, हफ्ते में 3-4 दिन ही काम

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कानपुर, 29 अगस्त 2025। Recession:  कानपुर, जिसे भारत का ‘लेदर सिटी’ कहा जाता है, की चमड़ा टैनरियां अभूतपूर्व संकट से जूझ रही हैं। अमेरिका द्वारा भारतीय चमड़ा उत्पादों पर आयात शुल्क को 10% से बढ़ाकर 60% करने के बाद, कानपुर की टैनरियां अब हफ्ते में केवल 3-4 दिन ही काम कर पा रही हैं। इस टैरिफ वृद्धि ने 2,000 करोड़ रुपये के वार्षिक निर्यात को लगभग ठप कर दिया है, जिससे करीब 10 लाख लोगों की आजीविका खतरे में पड़ गई है।

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कानपुर और पड़ोसी उन्नाव की चमड़ा टैनरियां पहले से ही पर्यावरणीय नियमों, जैसे नमामि गंगे परियोजना, और बिजली कटौती जैसी समस्याओं से जूझ रही थीं। अब अमेरिकी टैरिफ ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स (सेंट्रल रीजन) के चेयरमैन असद इराकी ने बताया कि क्रिसमस के ऑर्डर तो मिले हैं, लेकिन 50% टैरिफ के कारण अमेरिकी खरीदारों ने ऑर्डर रद्द कर दिए हैं। एक निर्यातक, जफर इकबाल, ने कहा, “मई में 10% टैरिफ पर हमने आधा खर्च उठाया था, लेकिन अब इतना भारी शुल्क कोई नहीं झेल सकता। हमारे पांच कंटेनर तैयार हैं, लेकिन अब क्या करें?”

कानपुर की चमड़ा इंडस्ट्री, जो देश के 30% चमड़ा व्यापार में योगदान देती है, पहले से ही गंगा प्रदूषण के कारण 400 में से 176 टैनरियों के बंद होने से कमजोर हो चुकी है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के सख्त नियमों और कुम्भ मेला जैसे आयोजनों के दौरान टैनरियों पर लगने वाली पाबंदियों ने उत्पादन को और सीमित कर दिया। इसके अलावा, वैश्विक मांग में कमी और बांग्लादेश, वियतनाम जैसे देशों से कम टैरिफ (19-20%) के कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।

नैर्यर जमाल, एक अन्य टैनरी मालिक, ने बताया कि पर्यावरणीय नियमों और अब टैरिफ वृद्धि ने उद्योग को “लकवाग्रस्त” कर दिया है। कई छोटे और मध्यम टैनरी मालिक अब कोलकाता के बंटाला लेदर हब या वियतनाम और तुर्की जैसे देशों में अपनी इकाइयां स्थानांतरित कर रहे हैं।, उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि बिना सरकारी हस्तक्षेप, जैसे ब्याज सब्सिडी या नए बाजारों तक पहुंच, यह उद्योग पूरी तरह ठप हो सकता है।

स्थानीय मजदूरों पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है। शादाब हुसैन जैसे कई श्रमिक, जो पहले टैनरियों में काम करते थे, अब रिक्शा चालक या सड़क किनारे दुकान चला रहे हैं। कानपुर की टैनरियां, जो कभी गल्फ, यूरोप और चीन को निर्यात करती थीं, अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। सरकार ने राहत उपायों पर चर्चा की है, लेकिन 50% टैरिफ के सामने ये नाकाफी हैं।

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