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आचार्य रामचंद्र दास ने प्रेमानंद महाराज विवाद पर दी सफाई, बढ़ाया एकता का संदेश
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तुलसी पीठ के उत्तराधिकारी रामचंद्र दास: संत प्रेमानंद विवाद में सुलह की कोशिश
चित्रकूट, 26 अगस्त 2025। उत्तर प्रदेश में स्थित तुलसी पीठ के प्रमुख और जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास ने हाल ही में संत प्रेमानंद महाराज को लेकर उपजे विवाद को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज को संस्कृत का एक श्लोक बोलने या उसका अर्थ समझाने की चुनौती दी थी। इस बयान से प्रेमानंद महाराज के अनुयायियों में नाराजगी फैल गई, और सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं।
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इस बीच, आचार्य रामचंद्र दास ने आगे आकर स्थिति को संभाला और एकता का संदेश दिया। आचार्य रामचंद्र दास, जो तुलसी पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में 2019 में नियुक्त हुए, लंबे समय से जगद्गुरु रामभद्राचार्य के शिष्य रहे हैं। चित्रकूट में तुलसी पीठ सेवा न्यास के संचालन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। रामचंद्र दास ने इस विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य का उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं था।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके गुरु का बयान सभी संतों और हिंदुओं के लिए संस्कृत अध्ययन को प्रोत्साहित करने का एक सामान्य सुझाव था। रामचंद्र दास ने कहा, “जगद्गुरु सबके गुरु हैं, और उनकी नजर में सारी प्रजा संतान समान है।” रामचंद्र दास ने यह भी जोड़ा कि रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज के प्रति कोई द्वेष नहीं रखा और वह उन्हें आशीर्वाद देने को तैयार हैं।
उन्होंने भक्तों से अपील की कि वे इस विवाद को गलतफहमी न मानें और सनातन धर्म की एकता के लिए मिलकर काम करें। इस बयान के बाद प्रेमानंद महाराज के अनुयायियों की नाराजगी में कमी आई, और सोशल मीडिया पर चल रही बहस शांत होने लगी। आचार्य रामचंद्र दास का यह कदम न केवल तुलसी पीठ की गरिमा को बनाए रखने में सफल रहा, बल्कि सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच एकता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण साबित हुआ।
रामचंद्र दास ने राम मंदिर आंदोलन में भी सहयोग किया है और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे हैं। उनकी यह पहल दिखाती है कि वह न केवल आध्यात्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी प्रभावशाली भूमिका निभाने में सक्षम हैं। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि आध्यात्मिक नेतृत्व में संयम और समझदारी कितनी महत्वपूर्ण है।
रामचंद्र दास ने अपने बयान से न केवल विवाद को शांत किया, बल्कि सनातन धर्म के मूल्यों को भी मजबूत किया। यह उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में भी वह तुलसी पीठ की परंपरा को आगे बढ़ाते रहेंगे।
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