आयरलैंड, 8 अगस्त 2025। आयरलैंड, जो अपनी शांत वादियों और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है, एक दिल दहला देने वाली घटना के कारण सुर्खियों में है। एक छह वर्षीय भारतीय मूल की बच्ची पर नस्लीय हमला हुआ, जिसमें किशोरों के एक समूह ने उसे “भारत भागो” कहकर अपमानित किया और उसके निजी अंगों पर प्रहार किया। यह क्रूर घटना न केवल एक मासूम बच्ची के प्रति हिंसा का प्रतीक है, बल्कि आयरलैंड में गहरे जड़ जमाए नस्लवाद की कड़वी सच्चाई को भी उजागर करती है।
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यह घटना आयरलैंड के इतिहास में नस्लवादी मानसिकता की गहरी जड़ों की ओर इशारा करती है। ऐतिहासिक रूप से, आयरलैंड स्वयं ब्रिटिश उपनिवेशवाद का शिकार रहा है, फिर भी विडंबना यह है कि आज यह नस्लवाद का केंद्र बन रहा है। इस संदर्भ में जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) का उल्लेख प्रासंगिक है, जहां आयरिश मूल के ब्रिटिश अधिकारी माइकल ओ’ड्वायर ने अमृतसर में सैकड़ों निहत्थे भारतीयों की हत्या का आदेश दिया था।
यह नरसंहार साम्राज्यवादी क्रूरता का प्रतीक था, जिसकी गूंज आज भी नस्लवादी हमलों में सुनाई देती है। आज की यह घटना उस ऐतिहासिक मानसिकता का आधुनिक रूप प्रतीत होती है। भारतीय मूल की बच्ची पर हमला केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक ऐसी सामाजिक बीमारी का लक्षण है जो आप्रवासियों, विशेषकर दक्षिण एशियाई समुदायों के प्रति पूर्वाग्रहों को दर्शाती है।
आयरलैंड में भारतीय समुदाय ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, फिर भी उन्हें इस तरह की हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। यह घटना आयरलैंड के समाज के लिए एक चेतावनी है कि वह अपने अतीत से सबक ले और सभी समुदायों के लिए एक समावेशी वातावरण बनाए। नस्लवाद के खिलाफ जागरूकता, शिक्षा, और कठोर कानूनी कार्रवाई ही इस समस्या का समाधान हो सकती है।
भारतीय दूतावास को इस मामले में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि पीड़ित परिवार को न्याय मिले और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। यह न केवल आयरलैंड, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक सवाल उठाता है कि क्या हम वाकई में एक समान और निष्पक्ष समाज की ओर बढ़ रहे हैं? इस घटना ने नस्लवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
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