उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जल्द ही अपने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करने वाली है। मौजूदा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो चुका है, और तब से नए नेतृत्व की नियुक्ति को लेकर चर्चा जोरों पर है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी इस बार जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे चेहरे की तलाश में है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में मिली हार से सबक लेते हुए 2027 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को मजबूती प्रदान कर सके।2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में करारा झटका लगा, जब उसकी सीटें 2019 के 62 से घटकर 33 रह गईं। इस हार का एक प्रमुख कारण समाजवादी पार्टी (सपा) की ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक’ (पीडीए) रणनीति को माना जा रहा है, जिसने बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई। इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए बीजेपी अब एक ऐसे अध्यक्ष की तलाश में है, जो सपा के पीडीए फॉर्मूले का जवाब दे सके और पार्टी के आधार को मजबूत कर सके।
दलित, ओबीसी या ब्राह्मण: कौन होगा अगला चेहरा?
पार्टी सूत्रों के अनुसार, नए अध्यक्ष के लिए तीन प्रमुख समुदायों—दलित, ओबीसी और ब्राह्मण—के नेताओं के नाम चर्चा में हैं। दलित नेतृत्व की वकालत करने वाले नेताओं का मानना है कि एक दलित चेहरा 2024 में सपा की ओर खिसके दलित वोटरों को वापस लाने में मदद कर सकता है। दूसरी ओर, ओबीसी नेतृत्व को पार्टी का परंपरागत आधार माना जाता है, क्योंकि गैर-यादव ओबीसी मतदाता बीजेपी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। वहीं, ब्राह्मण नेताओं को समर्थन देने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह समुदाय, जो लगभग 10% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, हाल के वर्षों में पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक, संभावित उम्मीदवारों में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक दलित नेता, जो विधान परिषद (एमएलसी) और पूर्व सांसद हैं, अमेठी से एक वरिष्ठ ब्राह्मण नेता और एक निषाद समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राज्यसभा सांसद शामिल हैं। इसके अलावा, ओबीसी नेताओं में केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा, जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह, राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद और एमएलसी अशोक कटारिया के नाम चर्चा में हैं। दलित नेताओं में पूर्व सांसद राम शंकर कठेरिया और एमएलसी विद्यासागर सोनकर भी दावेदार माने जा रहे हैं।
पार्टी की रणनीति और चुनौतियां
बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सपा के पीडीए फॉर्मूले का जवाब देना है। पार्टी का मानना है कि एक दलित या ओबीसी नेता की नियुक्ति न केवल सपा के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है, बल्कि 2025 के पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को मजबूती प्रदान कर सकती है। इसके साथ ही, बीजेपी को अपने परंपरागत ऊपरी जाति के वोटरों, खासकर ब्राह्मणों, को भी संतुष्ट करना होगा, जो हाल के वर्षों में पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं। 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद से उत्तर प्रदेश में 15 प्रदेश अध्यक्षों में से सात ब्राह्मण रहे हैं, जिनमें माधव प्रसाद त्रिपाठी, कलराज मिश्रा, केशरी नाथ त्रिपाठी, रामापति राम त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत बाजपेयी और महेंद्र नाथ पांडे जैसे नाम शामिल हैं। इसके बावजूद, इस बार पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि दलित या ओबीसी चेहरा चुनना अधिक रणनीतिक हो सकता है।
क्या कहते हैं विश्लेषक?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी का अगला कदम न केवल जातीय समीकरणों को संतुलित करने के लिए होगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि नया नेतृत्व पार्टी की जमीनी मशीनरी को सक्रिय कर सके। एक विश्लेषक के अनुसार, “नए अध्यक्ष का चयन एक प्रतीकात्मक संदेश होगा, जो यह दिखाएगा कि बीजेपी किन वोटर समूहों को प्राथमिकता दे रही है।” पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “2024 की हार ने हमें सबक दिया है। अब हमें सपा के पीडीए को अपने ‘पिछड़ा-दलित’ (पी-डी) कार्ड से जवाब देना होगा।” इस बीच, बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इस नियुक्ति को लेकर सावधानी बरत रहा है, क्योंकि यह फैसला न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी की रणनीति को प्रभावित करेगा।
आगे क्या?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के कारण अध्यक्ष की नियुक्ति में कुछ देरी हुई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अगले कुछ दिनों में इस पर अंतिम फैसला हो सकता है। बीजेपी की कोशिश होगी कि नया अध्यक्ष ऐसा हो, जो न केवल पार्टी को एकजुट करे, बल्कि विपक्ष की रणनीति का मुकाबला करते हुए 2027 के विधानसभा चुनावों में जीत सुनिश्चित कर सके।