नई दिल्ली, 6 अक्टूबर 2025। Poisonous Cough Syrup: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में हाल के हफ्तों में कफ सिरप पीने से 16 बच्चों की दर्दनाक मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इनमें से अधिकांश पांच साल से कम उम्र के थे, जो डॉक्टरों द्वारा बताए गए कोल्ड्रिफ ब्रांड के सिरप का सेवन करने के बाद किडनी फेलियर का शिकार हो गए। तमिलनाडु के कानचीपुरम में स्थित श्रीसन फार्मा द्वारा निर्मित इस सिरप के नमूनों में डाईएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा 48.6% तक पाई गई, जो स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक है।
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राजस्थान में भी दो से तीन बच्चों की मौत इसी तरह के संदिग्ध सिरप से जुड़ी बताई जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को सभी राज्यों के साथ आपात बैठक बुलाई, जिसमें दवा निर्माताओं को संशोधित अनुसूची एम मानदंडों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया। अनुपालन न करने पर लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी दी गई। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और केरल ने कोल्ड्रिफ पर तत्काल बैन लगा दिया, जबकि डॉक्टर प्रवीण सोनी को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन्होंने प्रभावित बच्चों को यह सिरप लिखा था।
🔹 Union Health Secretary Punya Salila Srivastava chaired high-level meeting with States/UTs on quality and rational use of cough syrups
🔹 Emphasizes strict compliance with the Revised Schedule M by all drug manufacturers; Thorough exercise of identification of non-compliant… pic.twitter.com/ZwmQ7ygFJZ
— PIB India (@PIB_India) October 6, 2025
यह पहली बार नहीं है जब कफ सिरप में जहरीली मिलावट ने मासूमों की जिंदगियां लील लीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2022 से अब तक वैश्विक स्तर पर 300 से अधिक बच्चों की मौतें DEG और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) युक्त सिरप से जुड़ी हैं। भारत में ही पिछले तीन वर्षों में 300 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं। 2022 में हरियाणा की मेडन फार्मास्यूटिकल्स के सिरप से गैंबिया में 70 बच्चों की मौत हुई थी। इसी तरह, 2023 में नॉरिस मेडिसिन के उत्पाद से उज्बेकिस्तान, कैमरून और गैंबिया में 141 मौतें दर्ज की गईं।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने 2023 में पहली बार अपनी मासिक रिपोर्ट में DEG/EG कंटामिनेशन को चिह्नित किया था। DEG और EG रंगहीन, गंधहीन अल्कोहलिक कंपाउंड हैं, जो औद्योगिक सॉल्वेंट के रूप में इस्तेमाल होते हैं। ये गाड़ियों के हाइड्रोलिक ब्रेक फ्लूइड, एंटीफ्रीज, पेंट, स्याही, सौंदर्य प्रसाधन और प्लास्टिक बनाने में प्रचलित हैं। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने 2007 में इन्हें जहर घोषित कर दवाओं में प्रतिबंधित कर दिया।
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक, एक किलोग्राम सिरप में 1-2 मिलीलीटर DEG मिलाने से ही मौत हो सकती है। सेवन के 8-24 घंटों में उल्टी, मितली, बेहोशी, ऐंठन, सांस लेने में तकलीफ और किडनी फेलियर जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। गंभीर मामलों में कोमा, मस्तिष्क क्षति और मल्टीपल ऑर्गन फेलियर 2-7 दिनों में हो जाता है।फार्मा कंपनियां लागत बचाने के लिए महंगे ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकॉल की जगह इन सस्ते जहरीले विकल्पों का अवैध इस्तेमाल करती हैं।
कफ सिरप को मीठा बनाने और घुलनशीलता बढ़ाने के लिए DEG मिलाया जाता है। भारत के 42 बिलियन डॉलर के दवा उद्योग में गुणवत्ता नियंत्रण की कमी इस समस्या को बढ़ावा दे रही है। बांग्लादेश, पनामा, नाइजीरिया और अमेरिका में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सख्त टेस्टिंग, आयातित सॉल्वेंट्स पर निगरानी और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन जरूरी है। सरकार ने प्रभावित परिवारों के लिए मुआवजा घोषित किया है, लेकिन सवाल वही है—अमेरिका जैसे देशों में बैन होने के बावजूद भारत में यह जहर क्यों घूम रहा है?
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