पीलीभीत, 13 नवंबर 2025। उत्तर प्रदेश सरकार ने पीलीभीत की एडीएम (वित्त एवं राजस्व) ऋतु पुनिया को पद से हटा कर वेटिंग लिस्ट में डाल दिया है। उन्हें लखनऊ मुख्यालय से अटैच कर लिया गया है। यह कार्रवाई एक विवादास्पद घटनाक्रम के बाद हुई, जिसमें उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (VHP) के संगठन मंत्री प्रिंस गौड़ के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था।
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इस मामले ने स्थानीय राजनीति को गरमा दिया और प्रशासन पर पक्षपात के आरोप लगे। 7 नवंबर को सदर कोतवाली में एडीएम पुनिया ने प्रिंस गौड़ पर अपनी छवि खराब करने, रंगदारी मांगने और हमला करवाने के आरोप लगाए। पुलिस ने अगले ही दिन, 8 नवंबर को प्रिंस को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इससे VHP और भाजपा के नेता भड़क उठे। प्रांतीय संगठन मंत्री राजेश और देवेंद्र सिंह पीलीभीत पहुंचे और प्रशासन पर तमाम इल्जाम लगाए।
हंगामा बढ़ने पर पुलिस ने प्रिंस को जेल से हटाकर जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया, स्वास्थ्य बिगड़ने का हवाला देकर। कोतवाली ने मुकदमे से गंभीर धाराएं हटा लीं, और 11 नवंबर को सीजेएम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। पूरे प्रकरण में एडीएम पुनिया की भूमिका पर सवाल उठे। VHP ने उन्हें फर्जी मुकदमा दर्ज करने का दोषी ठहराया, जबकि विपक्ष ने इसे अफसरों पर राजनीतिक दबाव का उदाहरण बताया। यूपी सरकार की यह कार्रवाई तय मानी जा रही थी, क्योंकि भाजपा-VHP के दबाव में प्रशासनिक स्तर पर नाराजगी साफ झलक रही थी।
कौन हैं ऋतु पुनिया?
2012 बैच की PCS अधिकारी, जो उत्तर प्रदेश राजस्व सेवा में तेज-तर्रार छवि की मालकिन हैं। बरेली डिवीजन के पीलीभीत में तैनाती से पहले वे अलीगढ़ में अपर नगर आयुक्त रहीं, जहां नगर निगम की कार्यप्रणाली में ताबड़तोड़ सुधार किए। उनका सख्त रवैया अफसरों-कर्मचारियों को खटकता था। अलीगढ़ में नगर सफाई मजदूर संघ के पदाधिकारियों से रेलवे रोड को लेकर उनकी तीखी बहस ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया।
बदायूं में भी एडीएम (प्रशासन) रह चुकीं पुनिया सात महीने के छोटे कार्यकाल में लगातार चर्चा में रहीं। पीलीभीत में भी उनकी सख्ती कम नहीं थी। नवंबर 초 में मंडी समिति के निरीक्षण के दौरान उन्होंने आढ़ती के जरिए धान खरीद में धांधली पकड़ी। केंद्र प्रभारी को पकड़वाकर पुलिस के हवाले किया, और उसके फोन से चैट्स बरामद कर खुलासा किया। इससे मंडी में हड़कंप मच गया।
ऐसी कार्रवाइयों ने उन्हें ईमानदार लेकिन विवादास्पद अफसर बना दिया। ट्रांसफर के बाद पुनिया के समर्थक इसे राजनीतिक प्रतिशोध बता रहे हैं, जबकि आलोचक इसे कानून की जीत। VHP ने गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की और मंडलायुक्त से शिकायत की। यूपी में अफसरों के ट्रांसफर की यह घटना प्रशासनिक स्वायत्तता पर सवाल खड़े कर रही है। क्या यह सख्ती का इनाम है या दबाव का नतीजा? समय बताएगा।
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