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मोहन भागवत का 75 की उम्र में रिटायरमेंट का बयान: क्या पीएम मोदी के लिए है छिपा संदेश?

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत के एक हालिया बयान ने भारतीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। भागवत ने कहा कि 75 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को सक्रिय नेतृत्व की भूमिका से हटकर मार्गदर्शन की भूमिका निभानी चाहिए। इस टिप्पणी को राजनीतिक गलियारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जो अगले साल मई में 75 वर्ष के हो जाएंगे। हालांकि, आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस बयान को सामान्य सलाह बताकर इसका राजनीतिकरण करने से इनकार किया है।

क्या है भागवत का बयान?

मंगलवार को नागपुर में एक आरएसएस कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने संगठनात्मक नेतृत्व और उम्र के संदर्भ में कहा, “75 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को अपनी ऊर्जा और अनुभव अगली पीढ़ी को सौंपकर मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए। यह संघ की परंपरा रही है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह सिद्धांत न केवल संघ बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी लागू हो सकता है। भागवत का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब BJP के भीतर नेतृत्व परिवर्तन और 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली मिश्रित सफलता के बाद संगठनात्मक रणनीति को लेकर चर्चाएं तेज हैं।PM मोदी और 75 वर्ष का नियम
BJP में एक अनौपचारिक नियम रहा है कि 75 वर्ष की आयु के बाद नेता सक्रिय राजनीति से हट जाते हैं। इस नियम के तहत पूर्व दिग्गज नेता जैसे लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को 2014 के बाद सक्रिय भूमिकाओं से हटाकर मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया गया था। हालांकि, इस नियम को PM मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर लागू नहीं किया गया, जिसे लेकर विपक्ष और कुछ राजनीतिक विश्लेषक सवाल उठाते रहे हैं। भागवत का ताजा बयान इस नियम को फिर से चर्चा में ला खड़ा किया है, खासकर तब जब PM मोदी 2026 में 75 वर्ष की आयु पूरी करेंगे।

सियासी हलचल और विपक्ष का हमला

भागवत के बयान के बाद विपक्षी दलों ने इसे BJP और PM मोदी पर दबाव के रूप में देखा है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, “संघ का यह बयान साफ संकेत है कि वह BJP में नेतृत्व परिवर्तन चाहता है। क्या PM मोदी इस सलाह को मानेंगे?” वहीं, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा, “संघ ने PM को रिटायरमेंट की सलाह दी है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह इसे स्वीकार करेंगे?” दूसरी ओर, BJP के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस मुद्दे को तूल न देने की सलाह देते हुए कहा कि भागवत का बयान सामान्य और वैचारिक है, जिसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

आरएसएस का स्पष्टीकरण

आरएसएस के एक वरिष्ठ प्रचारक ने भागवत के बयान को संदर्भ से बाहर ले जाने की आलोचना की। उन्होंने कहा, “सरसंघचालक ने केवल संगठनात्मक दृष्टिकोण और पीढ़ीगत बदलाव की बात की थी। इसे किसी व्यक्ति विशेष से जोड़ना गलत है।” उन्होंने यह भी दोहराया कि संघ का काम सलाह देना है, न कि BJP के लिए नीतियां बनाना। फिर भी, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान BJP के भीतर और बाहर नेतृत्व के भविष्य को लेकर चर्चा को हवा दे सकता है।

BJP के सामने चुनौतियां

2024 के लोकसभा चुनाव में BJP को पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद पार्टी गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर है। इस स्थिति ने पार्टी के भीतर नेतृत्व और रणनीति को लेकर सवाल खड़े किए हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भागवत का बयान युवा नेतृत्व को आगे लाने की दिशा में एक संकेत हो सकता है। हालांकि, PM मोदी की लोकप्रियता और उनके नेतृत्व में पार्टी की एकजुटता को देखते हुए इस तरह के बदलाव की संभावना कम ही मानी जा रही है।

आगे क्या?

भागवत का यह बयान न केवल BJP बल्कि भारतीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। अगले कुछ महीनों में होने वाले BJP के संगठनात्मक चुनाव और 2026 तक PM मोदी की उम्र को लेकर यह चर्चा और तेज हो सकती है। फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह बयान केवल एक सलाह के रूप में रहता है या BJP के भविष्य के लिए एक बड़ा संदेश बनकर उभरता है।

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