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मोदी की सांस्कृतिक कूटनीति: रूस को भारत की कला और विरासत का अनमोल तोहफा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हालिया रूस यात्रा के दौरान सांस्कृतिक कूटनीति का शानदार प्रदर्शन किया। मॉस्को में आयोजित 22वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन के दौरान उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य गणमान्य व्यक्तियों को भारत की समृद्ध कला, शिल्प और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाने वाले अनमोल उपहार भेंट किए। ये उपहार न केवल भारत की सांस्कृतिक गौरवगाथा को रेखांकित करते हैं, बल्कि दोनों देशों के बीच सौहार्द और सहयोग को और गहरा करने का माध्यम भी बने।

राष्ट्रपति पुतिन को सिल्वर ट्रे और शास्त्रीय ग्रंथ

प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन को एक शानदार सिल्वर ट्रे भेंट किया, जिस पर बारीक नक्काशी और पारंपरिक भारतीय डिजाइन उकेरे गए थे। यह ट्रे भारतीय शिल्पकला की बेजोड़ मिसाल है, जो देश के कारीगरों की पीढ़ियों पुरानी कला को दर्शाता है। इसके साथ ही, उन्होंने पुतिन को चार शास्त्रीय ग्रंथों की प्रतियां भी उपहार में दीं, जिनमें भारत के प्राचीन दर्शन और ज्ञान का सार समाहित है। ये ग्रंथ भारत की बौद्धिक और आध्यात्मिक विरासत के प्रतीक हैं, जो वैश्विक मंच पर देश की सॉफ्ट पावर को रेखांकित करते हैं।

रूसी प्रथम महिला को लकड़ी की मूर्तियां

रूस की प्रथम महिला को पीपल के पेड़ से बनी लकड़ी की नक्काशीदार मूर्तियां भेंट की गईं। ये मूर्तियां भारतीय ग्रामीण कला और पर्यावरण के प्रति सम्मान को दर्शाती हैं। पीपल का पेड़ भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है और इसे जीवन, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इन मूर्तियों में भारतीय कारीगरों की बारीक कारीगरी और सौंदर्यबोध की झलक साफ दिखाई देती है।मॉस्को के गणमान्य व्यक्तियों को भी अनूठे उपहार
मॉस्को में अन्य गणमान्य व्यक्तियों के लिए भी प्रधानमंत्री ने खास उपहार चुने। इनमें हस्तनिर्मित पश्मीना शॉल शामिल थे, जो कश्मीर की प्रसिद्ध बुनाई कला का प्रतीक हैं। इन शॉलों पर की गई जटिल कढ़ाई और रंगों का संयोजन भारतीय हस्तशिल्प की समृद्ध परंपरा को उजागर करता है। इसके अलावा, पारंपरिक भारतीय चित्रकला और धातु शिल्प से बने स्मृति चिह्न भी भेंट किए गए, जो भारत की विविध सांस्कृतिक पहचान को सामने लाते हैं।

सांस्कृतिक कूटनीति का वैश्विक प्रभाव

प्रधानमंत्री मोदी की यह सांस्कृतिक पहल केवल उपहारों तक सीमित नहीं थी; यह भारत की वैश्विक कूटनीति में सॉफ्ट पावर के महत्व को दर्शाती है। चाहे वह जी-20 शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं को उपहार देना हो या विदेशी मंचों पर भारतीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देना, मोदी ने बार-बार साबित किया है कि भारत की प्राचीन विरासत और आधुनिक महत्वाकांक्षाएं एक-दूसरे की पूरक हैं। रूस जैसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के साथ इस तरह के सांस्कृतिक आदान-प्रदान से न केवल द्विपक्षीय संबंध मजबूत होते हैं, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को भी नई ऊंचाइयां मिलती हैं।भारत-रूस संबंधों का नया अध्याय
22वां भारत-रूस शिखर सम्मेलन कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। इस दौरान दोनों देशों ने रक्षा, ऊर्जा, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों में सहयोग को और मजबूत करने का संकल्प लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान रूसी नेतृत्व के साथ भारत की साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत पर भी जोर दिया। इन उपहारों ने इस संदेश को और प्रभावी बनाया कि भारत और रूस के बीच संबंध केवल राजनीतिक और आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक भी हैं।

विश्व मंच पर भारत की सॉफ्ट पावर

प्रधानमंत्री मोदी की यह पहल भारत की सॉफ्ट पावर को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में एक और कदम है। भारतीय कला, शिल्प और साहित्य को उपहार के रूप में भेंट करना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को दुनिया के सामने लाने का एक रणनीतिक प्रयास है। इन उपहारों के जरिए भारत ने न केवल अपनी ऐतिहासिक गहराई, बल्कि आधुनिक कारीगरी और सौंदर्यबोध को भी प्रदर्शित किया।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सांस्कृतिक कूटनीति के जरिए देशों के बीच गहरे और स्थायी रिश्ते बनाए जा सकते हैं। सिल्वर ट्रे से लेकर पश्मीना शॉल और प्राचीन ग्रंथों तक, इन उपहारों ने भारत की कला, संस्कृति और विरासत को वैश्विक मंच पर चमकाया। यह पहल न केवल भारत-रूस संबंधों को नई ऊर्जा देगी, बल्कि विश्व समुदाय को भारत की सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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