नई दिल्ली, 19 नवंबर 2025। India Seafood Market: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अगस्त 2025 में भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ ने भारतीय सीफूड इंडस्ट्री, खासकर झींगा निर्यात को करारा झटका दिया था।
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भारत, जो वैश्विक झींगा उत्पादन में नंबर दो पर है, अमेरिका को सालाना 2.5 अरब डॉलर से अधिक का झींगा निर्यात करता है, लेकिन ट्रंप के पहले 25% टैरिफ (ट्रेड असंतुलन के नाम पर) और फिर 27 अगस्त को अतिरिक्त 25% पेनल्टी (रूसी तेल खरीद पर सजा के रूप में) ने कुल ड्यूटी को 58% तक पहुंचा दिया। इससे अमेरिका में झींगा की कीमतें 20-21% उछल गईं, ऑर्डर कैंसल हुए और आंध्र प्रदेश से निर्यात में 59% की गिरावट दर्ज की गई। यह झटका आंध्र प्रदेश के लिए विनाशकारी साबित हुआ, जो देश का 80% झींगा उत्पादन करता है।
यहां 3 लाख से अधिक किसान झींगा फार्मिंग पर निर्भर हैं। टैरिफ के बाद फार्म गेट प्राइस 19% गिर गए, कई प्रोसेसिंग यूनिट्स बंद हो गईं और निर्यातकों को 15-18% वॉल्यूम ड्रॉप का सामना करना पड़ा। सीआरआईएसआईएल की रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 5 अरब डॉलर का व्यापार खतरे में पड़ गया। मई 2025 तक भारत का झींगा निर्यात वॉल्यूम अप्रैल के समान स्थिर रहा, लेकिन वैल्यू 9% बढ़ी, जिसमें अमेरिका को 92,982 मीट्रिक टन (12% YoY ग्रोथ) का हिस्सा था। फिर भी, कुल सीफूड निर्यात में झींगा की 66% हिस्सेदारी पर खतरा मंडराया, लेकिन भारतीय सीफूड इंडस्ट्री ने हार नहीं मानी।
ट्रंप के टैरिफ को ठेंगा दिखाते हुए, इंडस्ट्री ने तेजी से डायवर्सिफिकेशन पर फोकस किया। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, “श्रिंप एक्सपोर्ट केवल बढ़ेंगे, घटेंगे नहीं।” इसके तहत नए बाजारों की तलाश तेज हो गई। सबसे बड़ा ब्रेकथ्रू रूस के साथ आया, जहां 18 नवंबर 2025 को घोषणा हुई कि रूस 25 भारतीय फिश प्रोसेसिंग यूनिट्स को निर्यात मंजूरी देगा। इससे भारत सीधे रूसी बाजार में प्रवेश कर सकेगा, जो सीफूड का बड़ा आयातक है।
इसी तरह, सितंबर 2025 में यूरोपीय यूनियन (EU) ने 102 नई भारतीय मरीन प्रोसेसिंग यूनिट्स को मंजूरी दी, जिससे कुल EU-अप्रूव्ड यूनिट्स 604 हो गईं। EU भारत का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, जहां 2024-25 में 215,080 मीट्रिक टन (15% कुल निर्यात) का व्यापार हुआ, वैल्यू 1.12 अरब डॉलर। मई 2025 तक EU को निर्यात 25% बढ़ा। अब भारत UAE और ऑस्ट्रेलिया के साथ भी बातचीत कर रहा है। 2024-25 में भारत ने कुल 4.88 अरब डॉलर का झींगा निर्यात किया, जो टोटल सीफूड के 7.45 अरब डॉलर का 66% है।
MPEDA की कोशिशों से GMP, ट्रेसेबिलिटी और HACCP जैसे स्टैंडर्ड्स मजबूत हुए, जिसने EU जैसी सख्त मार्केट्स को प्रभावित किया।आंध्र प्रदेश के किसान एस.वी.एल. पाठी राजू जैसे हजारों प्रभावितों के लिए यह कमबैक राहत है। इंडस्ट्री लीडर्स का मानना है कि डायवर्सिफिकेशन से नुकसान 10% तक सीमित रहेगा। भारत-EFTA ट्रेड एग्रीमेंट (अक्टूबर 2025 से प्रभावी) नॉर्वे-स्विट्जरलैंड जैसे बाजार खोलेगा।
यह न केवल आर्थिक रिकवरी का प्रतीक है, बल्कि भारत की वैश्विक ट्रेड रेजिलिएंस को भी दर्शाता है। सरकार की डिप्लोमेसी और इंडस्ट्री की स्मार्ट स्ट्रैटेजी से ‘मेक इन इंडिया’ का सपना साकार हो रहा है।
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