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एनआईए कोर्ट में खुलासा, एटीएस ने गवाह को धमकाकर बनवाया झूठा बयान
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2008 मालेगांव ब्लास्ट, सभी अभियुक्त बरी, जांच की विश्वसनीयता पर उठे सवाल
मुंबई, 3 अगस्त 2025। Malegaon Blast Case: 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में एक गवाह ने विशेष एनआईए कोर्ट में चौंकाने वाला बयान दिया है। गवाह मिलिंद जोशीराव ने दावा किया कि महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने उन्हें अवैध हिरासत में रखकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े नेताओं का नाम लेने के लिए मजबूर किया। यह खुलासा उस समय हुआ जब 31 जुलाई 2025 को विशेष एनआईए कोर्ट ने इस मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात अभियुक्तों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
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मिलिंद जोशीराव, जो अभिनव भारत संगठन से जुड़े थे, ने कोर्ट को बताया कि अक्टूबर 2008 में एटीएस ने उन्हें एक सप्ताह तक गैरकानूनी हिरासत में रखा। इस दौरान, उन्हें योगी आदित्यनाथ, आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार, स्वामी असीमानंद, और अन्य लोगों का नाम मामले में घसीटने के लिए धमकाया गया। जोशीराव ने कहा कि तत्कालीन एटीएस अधिकारियों, जैसे डिप्टी कमिश्नर श्रीराव और असिस्टेंट कमिश्नर परम बीर सिंह, ने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। उनके बयान को एटीएस ने पहले से तैयार किया था और उन्हें इसे हू-ब-हू दोहराने के लिए मजबूर किया गया।
विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि जोशीराव का बयान जबरन लिया गया था, जिसके कारण इसे कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने 1,000 पन्नों से अधिक के अपने फैसले में अभियोजन पक्ष की कमजोर तैयारी और विश्वसनीय सबूतों की कमी पर सवाल उठाए। इस मामले में 323 गवाहों की गवाही ली गई, जिनमें से 39 अपने मूल बयानों से पलट गए, जिसने जांच की निष्पक्षता पर गंभीर संदेह पैदा किया।
मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर रखे गए विस्फोटक उपकरण के फटने से छह लोगों की मौत और 101 लोग घायल हुए थे। यह हमला रमजान और नवरात्रि के बीच हुआ था, जिसे अभियोजन पक्ष ने अभिनव भारत जैसे हिंदूवादी संगठनों द्वारा मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की साजिश बताया था। हालांकि, कोर्ट ने अभियोजन के इस दावे को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत न होने की बात कही। इस फैसले ने राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं उकसाई हैं। बीजेपी ने इसे “हिंदू आतंकवाद” के कथित नैरेटिव को ध्वस्त करने वाला फैसला बताया, जबकि कांग्रेस और एआईएमआईएम ने जांच में खामियों और न्याय न मिलने की बात कही।
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने जांच एजेंसियों की जवाबदेही पर सवाल उठाए, जबकि अभियुक्तों में से एक, समीर कुलकर्णी, ने दावा किया कि यह मामला 2009 के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक लाभ के लिए गढ़ा गया था। निष्कर्षमालेगांव बम विस्फोट मामले में सभी अभियुक्तों की रिहाई और गवाह के खुलासे ने जांच प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह मामला न केवल आतंकवाद से जुड़े मामलों में जांच की निष्पक्षता को लेकर चर्चा को जन्म देता है, बल्कि राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंकाओं को भी बल देता है।
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