कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक रूसी महिला की दो बेटियों के अचानक हुए निर्वासन आदेश पर रोक लगाते हुए बच्चों के हितों को सर्वोपरि माना है। कोर्ट ने यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ द चाइल्ड (UNCRC) के सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि बच्चों की भलाई और उनके अधिकारों को ध्यान में रखते हुए कोई भी निर्णय लिया जाना चाहिए।
यह मामला तब सामने आया जब वकील बीना पिल्लई के माध्यम से एक रिट याचिका दाखिल कर दो मासूम बच्चियों—6 वर्षीय प्रेया और 4 वर्षीय अमा—के निर्वासन के खिलाफ चुनौती दी गई। याचिका में दावा किया गया कि निर्वासन प्रक्रिया में बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्थिति की कोई परवाह नहीं की गई, जो कि UNCRC के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।
भारत सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि बच्चों के पास वैध यात्रा या पहचान दस्तावेज नहीं हैं। इसके जवाब में कोर्ट ने कहा कि दस्तावेजों की अनुपस्थिति के आधार पर बच्चों का तत्काल निर्वासन उचित नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मामले में गहराई से जांच और विस्तृत सुनवाई आवश्यक है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे दो हफ्ते में अपने जवाब और दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत करें। इसके साथ ही यह आदेश भी दिया गया कि 18 अगस्त को अगली सुनवाई तक बच्चों या उनकी मां को बिना पूर्व अनुमति भारत से बाहर न भेजा जाए।
इस मामले में एक और नया मोड़ तब आया जब महिला के पूर्व पति और इजराइली नागरिक ड्रोर गोल्डस्टीन सामने आए। उन्होंने अदालत में दावा किया कि वे बेटियों के जैविक पिता हैं और उन्होंने संयुक्त संरक्षकता की मांग की है। ड्रोर ने कहा कि वह साल में छह महीने भारत (मुख्य रूप से गोवा) में रहते हैं और चाहते हैं कि उनकी बेटियां यहीं रहें ताकि वह उनके जीवन में सक्रिय रूप से हिस्सा ले सकें। उनका कहना है कि अगर मां उन्हें रूस ले गईं तो उनसे संपर्क टूट जाएगा, जो बच्चों के हित में नहीं होगा।
11 जुलाई को, कर्नाटक पुलिस ने नीना कुटीना और उनकी दोनों बेटियों को उत्तर कन्नड़ जिले के गोकर्ण में एक गुफा से रेस्क्यू किया था, जहां वे वीजा की अवधि समाप्त होने के बावजूद रह रही थीं।