लखनऊ, 26 अगस्त 2025। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण दिखाई दे रहा है। जिस पार्टी ने लंबे समय तक विपक्ष को कड़ी टक्कर दी और सत्ता में मजबूत पकड़ बनाए रखी, वह अब अपने ही नेताओं के बीच उभरते मतभेदों के कारण असहज स्थिति में है। पूरब से लेकर पश्चिम तक, यूपी बीजेपी में अंदरूनी कलह की खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं। यह स्थिति न केवल पार्टी की एकता को प्रभावित कर रही है, बल्कि इसका असर आगामी राजनीतिक रणनीतियों और चुनावी तैयारियों पर भी पड़ सकता है।
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पिछले कुछ महीनों में, यूपी बीजेपी के कई नेताओं के बीच मतभेद सार्वजनिक मंचों पर उजागर हुए हैं। पूरब के जिलों जैसे वाराणसी, गोरखपुर और आजमगढ़ से लेकर पश्चिम के मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद तक, पार्टी के भीतर असंतोष की आवाजें तेज हो रही हैं। कुछ नेता केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के फैसलों से असहमति जता रहे हैं, तो कुछ स्थानीय स्तर पर अपनी उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। यह असंतोष कभी-कभी सार्वजनिक बयानों, सोशल मीडिया पोस्ट या कार्यकर्ताओं के बीच चर्चाओं के रूप में सामने आ रहा है, जो पार्टी के लिए एक नई चुनौती बन रहा है।
पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यह अंदरूनी कलह संगठन की एकजुटता को कमजोर कर सकती है। खासकर तब, जब विपक्षी दल जैसे समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपने ही नेताओं को एकजुट रखे और उनके बीच समन्वय स्थापित करे। हाल के दिनों में, कुछ नेताओं ने स्थानीय मुद्दों को लेकर केंद्रीय नेतृत्व की नीतियों पर सवाल उठाए हैं। मिसाल के तौर पर, पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के बाद से कुछ नेताओं ने केंद्र सरकार की कृषि नीतियों पर असहमति जताई है, जिससे पार्टी के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।
पूरब में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। गोरखपुर और वाराणसी जैसे क्षेत्रों में, जहां बीजेपी का मजबूत जनाधार रहा है, स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष की खबरें सामने आई हैं। कुछ नेताओं का आरोप है कि टिकट वितरण और संगठनात्मक नियुक्तियों में उनकी अनदेखी की जा रही है। यह असंतोष तब और बढ़ जाता है, जब कुछ नए चेहरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाती हैं, जबकि पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है।इसके अलावा, सोशल मीडिया पर पार्टी नेताओं के बीच तीखी बयानबाजी ने भी आग में घी डालने का काम किया है।
कुछ नेताओं ने अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निशाना साधा, जिससे कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। यह स्थिति बीजेपी के लिए इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि यूपी में अगले विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और पार्टी को अपनी एकजुट छवि बनाए रखने की जरूरत है।पार्टी नेतृत्व ने इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। केंद्रीय और राज्य स्तर पर बैठकों का दौर शुरू हो चुका है, जहां नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, इन प्रयासों का कितना असर होगा, यह समय ही बताएगा। बीजेपी को यह समझना होगा कि विपक्ष की जगह उसकी सबसे बड़ी चुनौती अब उसका अपना आंतरिक असंतोष है।
अगर यह कलह जल्दी नियंत्रित नहीं हुई, तो यह पार्टी की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।शब्द गणना: 500नोट: यह लेख काल्पनिक है और केवल उपयोगकर्ता के अनुरोध के आधार पर लिखा गया है। किसी भी तथ्य की पुष्टि के लिए विश्वसनीय स्रोतों का सहारा लें।
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