नई दिल्ली, 22 अगस्त 2025। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और भारत पर लगाए गए 25% टैरिफ, जो रूसी तेल आयात के कारण 50% तक बढ़ सकते हैं, ने वैश्विक कूटनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। इस दबाव ने भारत और चीन जैसे ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वियों को एक अप्रत्याशित रणनीतिक गठजोड़ की ओर धकेल दिया है।
इसे भी पढ़ें- Zero Tariff: भारत-चीन ‘जीरो टैरिफ’ समझौते पर क्यों नहीं हो सकते सहमत? ट्रंप के टैरिफ से बढ़ी व्यापारिक चुनौतियां
दोनों देशों के बीच 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद तनावपूर्ण रहे संबंध अब धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं, और ट्रंप की नीतियां इस बदलाव को और तेज कर रही हैं। क्या यह ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के पुराने नारे की वापसी का संकेत है, जिसे 1950 के दशक में जवाहरलाल नेहरू और माओ ज़ेडॉन्ग ने लोकप्रिय बनाया था?पिछले कुछ महीनों में भारत और चीन के बीच संबंधों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है।
अक्टूबर 2024 में रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया। दोनों देशों ने सीधे वाणिज्यिक उड़ानों को फिर से शुरू करने, पर्यटक वीजा की बहाली, और पश्चिमी तिब्बत में भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए दो तीर्थ स्थलों को फिर से खोलने पर सहमति जताई। इसके अलावा, हिमालयी सीमा पर तीन व्यापारिक चौकियों को फिर से खोलने की चर्चा चल रही है, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को सामान्य करने का प्रतीक है।
ट्रंप की नीतियों ने भारत और चीन को एक साझा हित की ओर ले जाया है। भारत, जो 36% कच्चा तेल रूस से आयात करता है, और चीन, जो लंबे समय से अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, अब एक अप्रत्याशित और अस्थिर वाशिंगटन का सामना कर रहे हैं। ट्रंप ने भारत की अर्थव्यवस्था को “मृत” करार देते हुए रूसी तेल आयात पर सवाल उठाए और उच्च टैरिफ की धमकी दी। यह वही भारत है जिसे अमेरिका ने वर्षों से चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक लोकतांत्रिक प्रतिकार के रूप में देखा था।
चीन ने इस स्थिति का लाभ उठाने में देर नहीं की। चीनी स्टेट मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की सराहना की, जिसमें रूसी तेल आयात को आर्थिक जरूरतों के आधार पर उचित ठहराया गया। चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का यह रुख ट्रंप के दबाव के बावजूद नहीं बदलेगा, क्योंकि यह भारत की आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके जवाब में, भारत ने भी सतर्क लेकिन सकारात्मक रुख अपनाया। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि दोनों देश सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने के लिए संवाद में हैं।
हालांकि, यह नजदीकी बिना चुनौतियों के नहीं है। भारत और चीन के बीच 1962 के युद्ध और 2020 के गलवान संघर्ष की कड़वी यादें अभी भी ताजा हैं। दोनों देश हिंद महासागर और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। चीन अपनी सीमा पर सड़कों, रेल नेटवर्क और सैन्य गांवों का निर्माण कर रहा है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। फिर भी, विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की नीतियां दोनों देशों को एक रणनीतिक गठजोड़ की ओर ले जा रही हैं, जो वैश्विक व्यापार और भू-राजनीति में नई संभावनाएं खोल सकता है।
भारत के लिए यह स्थिति जटिल है। जहां एक ओर वह अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को बनाए रखना चाहता है, वहीं ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियों ने उसे वैकल्पिक रास्तों की तलाश करने के लिए मजबूर किया है। मोदी ने हाल ही में वाराणसी में एक भाषण में कहा, “भारत अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा।” यह बयान ट्रंप के दबाव के खिलाफ भारत की दृढ़ता को दर्शाता है।
चीन भी इस अवसर को भुनाने की कोशिश में है। उसने भारत की दुर्लभ मिट्टी की जरूरतों को पूरा करने का वादा किया है और व्यापारिक बाधाओं को कम करने की दिशा में कदम उठाए हैं। हालांकि, यह गठजोड़ कितना टिकाऊ होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों देश अपनी ऐतिहासिक शत्रुता को कितना पीछे छोड़ पाते हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल ट्रंप प्रशासन के खिलाफ एक अस्थायी रणनीति हो सकती है।
सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ा है। कुछ भारतीय यूजर्स का मानना है कि भारत और चीन का यह गठजोड़ अमेरिका और पश्चिमी देशों की “दादागिरी” को कम कर सकता है, लेकिन अन्य लोग इसे रूस के खिलाफ एक रणनीति और संभावित वैश्विक युद्ध की ओर कदम के रूप में देखते हैं।कुल मिलाकर, ट्रंप की नीतियों ने भारत और चीन को एक साझा मंच पर ला खड़ा किया है, लेकिन यह गठजोड़ कितना गहरा और टिकाऊ होगा, यह भविष्य की कूटनीति और आर्थिक रणनीतियों पर निर्भर करता है।