गुजरात के वडोदरा ज़िले में महिसागर नदी पर बना गंभीरा पुल बुधवार सुबह 7:30 बजे अचानक ढह गया, जिसने 13 लोगों की जान ले ली और कई परिवारों को गहरे सदमे में डुबो दिया। इस 39 साल पुराने पुल के ढहने से तीन ट्रक, एक पिकअप वैन, एक ऑटो-रिक्शा और एक सात-सीटर गाड़ी नदी में जा गिरीं। एक टैंकर खतरनाक तरीके से पुल के किनारे पर लटक गया, जिसे बाद में सुरक्षित निकाला गया। इस हादसे ने न केवल स्थानीय प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया, बल्कि गुजरात में बुनियादी ढांचे की सुरक्षा पर गंभीर सवाल भी खड़े किए।
तीन साल पहले की चेतावनी को क्यों नज़रअंदाज़ किया गया?
गंभीरा पुल, जो वडोदरा और आनंद ज़िलों को जोड़ता है, लंबे समय से खस्ताहाल था। 1 नवंबर 2022 को वडोदरा ज़िला पंचायत के सदस्य हर्षदसिंह परमार ने सड़क और भवन (R&B) विभाग को पत्र लिखकर पुल की “बेहद गंभीर” स्थिति की ओर ध्यान दिलाया था। उन्होंने “असामान्य कंपन” और संरचनात्मक कमज़ोरी की शिकायत की थी, जिसके बाद विभाग ने निरीक्षण तो किया, लेकिन केवल सतही मरम्मत कर पुल को यातायात के लिए खुला रखा। स्थानीय निवासियों ने भी शिकायत की थी कि भारी वाहनों के गुज़रने पर पुल खतरनाक तरीके से हिलता था। स्थानीय बीजेपी विधायक चैतन्यसिंह ज़ाला ने भी नया पुल बनाने की सिफारिश की थी, जिसके लिए सर्वेक्षण हुआ और योजना बनी, लेकिन पुराने पुल को बंद करने या उसकी मरम्मत को गंभीरता से लेने में प्रशासन नाकाम रहा। यह हादसा 2022 के मोरबी पुल हादसे की याद दिलाता है, जिसमें 135 लोगों की मौत हुई थी।
विशेषज्ञों का कहना है कि गुजरात में 2021 से अब तक कम से कम सात पुल हादसे हो चुके हैं, जो प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हैं। हादसे की भयावहता: प्रत्यक्षदर्शियों की ज़ुबानीहादसे के समय पुल पर मौजूद वाहन चालक गणपत सोलंकी, जो चमत्कारिक रूप से बच गए, ने बताया, “मैंने कुछ सेकंड में सब कुछ खो दिया। अचानक ज़ोर की आवाज़ आई और मैं नदी में था।” पास के डबका और मुजपुर गाँव के निवासियों ने हादसे की आवाज़ सुनकर तुरंत बचाव कार्य शुरू किया।
करीब एक घंटे तक स्थानीय लोग ही बचाव में जुटे रहे, जब तक कि वडोदरा फायर ब्रिगेड और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की टीमें मौके पर नहीं पहुँचीं। एक दिल दहला देने वाला वीडियो सामने आया, जिसमें एक महिला, सोनलबेन रमेश पधियार, अपने डूबते बच्चे को बचाने की गुहार लगाती दिखी। सोनलबेन अपने पति, बेटे, बेटी और दामाद के साथ एक ईको कार में यात्रा कर रही थीं, जब हादसा हुआ। उनके दो नाबालिग पोते-पोतियों सहित परिवार के कई सदस्य इस हादसे में मारे गए। बचाव कार्य और सरकारी प्रतिक्रियावडोदरा के कलेक्टर अनिल धमेलिया ने बताया कि बचाव कार्य में प्राथमिकता घायलों को निकालने और शवों को बरामद करने की थी।
अब तक 13 शव बरामद किए गए हैं, जिनमें दो भाई-बहन (2 और 4 साल के) शामिल हैं। नौ लोगों को सुरक्षित निकाला गया, जिन्हें वडोदरा के एसएसजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। कोई भी घायल गंभीर हालत में नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर दुख जताते हुए मृतकों के परिजनों के लिए 2 लाख रुपये और घायलों के लिए 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि की घोषणा की। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सड़क और भवन विभाग को जांच के आदेश दिए हैं और निजी इंजीनियरों की एक विशेष टीम को मौके पर भेजा गया है। लेकिन स्थानीय लोग और विपक्षी दल इस प्रतिक्रिया को “देर से उठाया गया कदम” बता रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हादसे पर शोक जताया और ट्वीट किया, “वडोदरा में पुल ढहने से कई निर्दोष लोगों की मौत दुखद है। प्रभावित परिवारों के प्रति मेरी संवेदनाएँ।” वहीं, कुछ नेताओं ने इसे “गुजरात मॉडल के भ्रष्टाचार” का परिणाम बताया।
क्या थीं हादसे की वजहें?
गंभीरा पुल, जिसकी लंबाई 900 मीटर है और इसमें 23 पिलर हैं, 1986 में बनाया गया था। यह मध्य गुजरात को सौराष्ट्र से जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग था, जिसका उपयोग भारी ट्रकों और टैंकरों सहित रोज़ाना हज़ारों वाहन करते थे। विशेषज्ञों का कहना है कि पुरानी संरचना, अपर्याप्त रखरखाव, और भारी वाहनों का दबाव हादसे की प्रमुख वजहें हो सकती हैं। पैसिफिक बिजनेस रिव्यू इंटरनेशनल के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में रखरखाव और गुणवत्ता नियंत्रण की कमी बार-बार हादसों का कारण बनती है। वडोदरा में हाल के दिनों में भारी बारिश ने भी पुल की नींव को कमज़ोर किया हो सकता है, लेकिन इसकी पुष्टि जांच के बाद ही होगी।
आगे क्या?
यह हादसा गुजरात में बुनियादी ढांचे की सुरक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही पर एक बड़ा सवाल है। स्थानीय लोग अब मांग कर रहे हैं कि पुराने पुलों का तत्काल ऑडिट किया जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। सड़क और भवन विभाग के सचिव पी.आर. पाटेलिया ने कहा, “हमने विशेषज्ञों की एक टीम को जांच के लिए भेजा है।” लेकिन जनता का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, क्योंकि यह पहला मौका नहीं है जब ऐसी लापरवाही सामने आई हो।
निष्कर्ष:
एक सबक जो बार-बार भुलाया जाता हैगंभीरा पुल हादसा केवल एक संरचनात्मक विफलता नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और प्राथमिकताओं की कमी का प्रतीक है। तीन साल पहले की चेतावनी को नज़रअंदाज़ करना, सतही मरम्मत, और नए पुल की योजना को ठंडे बस्ते में डालना – ये सभी इस त्रासदी के लिए ज़िम्मेदार हैं। यह हादसा हमें याद दिलाता है कि बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को हल्के में लेना कितना महंगा पड़ सकता है। सवाल यह है कि क्या अब भी कोई सबक लिया जाएगा, या यह हादसा भी मोरबी की तरह भुला दिया जाएगा?