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यूपी चुनाव में हार के बाद मायावती का बिहार में अकेले लड़ने का दावा, NDA और INDIA किसकी बढ़ेगी मुश्किल

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Mayawati

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लखनऊ, 2 सितंबर 2025उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अकेले लड़ने की घोषणा करके सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। यूपी में 80 सीटों में से मात्र एक सीट (नगीना) जीतने वाली BSP अब बिहार में अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में है।
मायावती का यह कदम न केवल विपक्षी गठबंधन INDIA को, बल्कि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए भी नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है। उनके इस फैसले ने बिहार की सियासत में एक नए समीकरण की शुरुआत की है, जहां दलित वोट बैंक और सामाजिक समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं।
यूपी में BSP का कमजोर प्रदर्शन

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2024 के लोकसभा चुनाव में BSP ने उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहे। 2019 में समाजवादी पार्टी (SP) के साथ गठबंधन में 10 सीटें जीतने वाली BSP इस बार केवल एक सीट पर सिमट गई। मायावती ने इस हार के लिए पार्टी के भीतर की कमजोरियों और कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता को जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने कहा कि यूपी में BSP का वोट बैंक, खासकर दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग, अब भी मजबूत है, लेकिन संगठनात्मक स्तर पर सुधार की जरूरत है। मायावती ने हार के बाद कार्यकर्ताओं को फिर से सक्रिय करने और संगठन को मजबूत करने का ऐलान किया। उनके इस बयान को बिहार में उनकी नई रणनीति का आधार माना जा रहा है।
बिहार में अकेले लड़ने की रणनीति
मायावती ने हाल ही में ऐलान किया कि BSP बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी और सभी 243 सीटों पर अकेले लड़ेगी। यह घोषणा बिहार की सियासत में एक बड़ा बदलाव ला सकती है, जहां NDA (BJP, JD(U), LJP) और INDIA गठबंधन (RJD, Congress, Left) के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलती है। मायावती का दावा है कि BSP बिहार में दलित, अति पिछड़ा, और अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट कर एक मजबूत ताकत बन सकती है। बिहार में दलित समुदाय की आबादी करीब 16% है, और BSP इस वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की कोशिश में है।

मायावती ने कहा, “BSP का मिशन सामाजिक न्याय और दलित-उत्थान है। हम बिहार में बिना किसी गठबंधन के अपनी ताकत दिखाएंगे।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि NDA और INDIA दोनों गठबंधन दलित हितों की अनदेखी करते हैं और केवल सत्ता के लिए सियासत करते हैं। BSP ने बिहार में पहले भी कुछ सीटों पर प्रभाव दिखाया है, लेकिन कभी भी निर्णायक भूमिका में नहीं रही। 2020 के विधानसभा चुनाव में BSP ने 3.6% वोट शेयर हासिल किया था, लेकिन कोई सीट नहीं जीती। इस बार मायावती की रणनीति अधिक आक्रामक और संगठित दिख रही है।
NDA और INDIA गठबंधन के लिए चुनौती
मायावती का बिहार में अकेले लड़ने का फैसला दोनों प्रमुख गठबंधनों के लिए टेंशन का सबब बन सकता है। बिहार में दलित वोट पारंपरिक रूप से RJD और JD(U) के बीच बंटते रहे हैं। RJD नेता लालू प्रसाद यादव और JD(U) के नीतीश कुमार दोनों ही दलित समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन मायावती की एंट्री इस समीकरण को बिगाड़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि BSP अगर दलित और अति पिछड़े वोटों को एकजुट करने में सफल रही, तो यह NDA और INDIA दोनों के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है।
NDA के लिए मायावती की रणनीति खासतौर पर चिंता का विषय है। 2024 के लोकसभा चुनाव में NDA ने बिहार में 40 में से 30 सीटें जीती थीं, लेकिन BJP की सीटें 17 से घटकर 12 हो गई थीं। मायावती की मौजूदगी NDA के लिए दलित और OBC वोटों को और बिखरने का खतरा पैदा कर सकती है। दूसरी ओर, INDIA गठबंधन, खासकर RJD, को भी अपने पारंपरिक दलित समर्थकों के बिखरने का डर है। मायावती की सभाओं में उमड़ रही भीड़ और उनकी आक्रामक रणनीति से यह स्पष्ट है कि वह बिहार में कोई बड़ा उलटफेर करने की मंशा रखती हैं।
मायावती की रणनीति और सामाजिक समीकरण
मायावती की रणनीति का केंद्र बिहार के सामाजिक समीकरणों पर टिका है। वह दलितों के साथ-साथ अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और मुस्लिम वोटों को भी अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही हैं। बिहार में EBC की आबादी करीब 36% है, और यह समुदाय नीतीश कुमार का मजबूत आधार रहा है। मायावती ने नीतीश सरकार पर EBC और दलितों की उपेक्षा का आरोप लगाया है। साथ ही, उन्होंने मुस्लिम समुदाय को भी यह भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि BSP उनकी आवाज उठाएगी।
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मायावती ने हाल ही में बिहार के कई जिलों में जनसभाएं की हैं, जहां उन्होंने सामाजिक न्याय, रोजगार, और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “बिहार में दलितों और पिछड़ों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। BSP इन वर्गों को सत्ता में हिस्सेदारी देगी।” उनकी यह रणनीति बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव डाल रही है, जहां लोग रोजगार और गरीबी जैसे मुद्दों से जूझ रहे हैं।
विपक्ष और NDA की प्रतिक्रिया
RJD और Congress ने मायावती के इस कदम को ‘BJP की B-टीम’ करार देकर उनकी मंशा पर सवाल उठाए हैं। RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि मायावती का अकेले लड़ना NDA को फायदा पहुंचाएगा। वहीं, BJP और JD(U) ने इसे विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति बताया। हालांकि, मायावती ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि BSP का एकमात्र लक्ष्य सामाजिक उत्थान और सत्ता में हिस्सेदारी है। भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां
मायावती के लिए बिहार में अकेले लड़ना आसान नहीं होगा।
BSP के पास यूपी की तरह बिहार में मजबूत संगठनात्मक ढांचा नहीं है। कार्यकर्ताओं की कमी और सीमित संसाधन उनकी राह में रोड़ा बन सकते हैं। साथ ही, बिहार में क्षेत्रीय दलों का दबदबा और जटिल जातिगत समीकरण उनकी राह को और मुश्किल कर सकते हैं। फिर भी, मायावती का आत्मविश्वास और दलित वोटों पर उनकी पकड़ उन्हें एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना सकती है। 

मायावती का बिहार में अकेले लड़ने का फैसला 2025 के विधानसभा चुनाव को और रोचक बना देगा। अगर BSP कुछ सीटों पर जीत हासिल करती है या वोट शेयर बढ़ाती है, तो यह NDA और INDIA दोनों के लिए गंभीर चुनौती होगी। मायावती की यह रणनीति न केवल बिहार की सियासत को प्रभावित करेगी, बल्कि यूपी में BSP के पुनर्जनन की संभावनाओं को भी बल दे सकती है।

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