नई दिल्ली 25 सितंबर 2025। Election Commission: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने देशव्यापी विशेष गहन संशोधन (SIR) अभियान शुरू करने से पहले एक महत्वपूर्ण बदलाव का फैसला किया है। बिहार में SIR के विवादास्पद कार्यान्वयन के सबक को ध्यान में रखते हुए, आयोग अब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) को निर्देश देगा कि वे राजनीतिक दलों के साथ पूर्व परामर्श बैठकें आयोजित करें। यह कदम पारदर्शिता बढ़ाने और विपक्षी दलों की चिंताओं को दूर करने के उद्देश्य से उठाया गया है, जो बिहार SIR के दौरान मतदाता बहिष्कार के आरोपों से उपजा है।
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बिहार में SIR की शुरुआत 24 जून 2025 को हुई, जब आयोग ने विधानसभा चुनावों (नवंबर 2025) से पहले मतदाता सूचियों का विशेष गहन संशोधन करने का आदेश जारी किया। यह अभियान 2003 की पुरानी सूची को आधार बनाकर किया गया, जिसमें हर मतदाता को नया गणना फॉर्म भरना पड़ा। उद्देश्य था डुप्लिकेट एंट्रीज, मृत मतदाताओं के नाम और गैर-नागरिकों को हटाना। लेकिन, यह प्रक्रिया विवादों में घिर गई। विपक्षी दल, खासकर INDIA गठबंधन (RJD, कांग्रेस आदि), ने आरोप लगाया कि इससे लाखों मतदाता, विशेष रूप से मुस्लिम और प्रवासी मजदूरों को बहिष्कृत किया जा रहा है।
अनुमान है कि बिहार से 75 लाख लोग अन्य राज्यों में प्रवासित हैं, जिनके लिए फॉर्म भरना मुश्किल था।सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और योगेंद्र यादव जैसे कार्यकर्ताओं ने 7 जुलाई 2025 को PIL दायर की, जिसमें SIR को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन बताया गया। अदालत ने अंतरिम आदेश जारी कर ECI को निर्देश दिया कि आधार कार्ड को वैध दस्तावेज मानते हुए बहिष्कृत मतदाताओं के दावों पर 1 सितंबर के बाद भी विचार किया जाए। राजनीतिक दलों को बहिष्कृत मतदाताओं की सहायता करने को कहा गया। इसके अलावा, ड्राफ्ट सूचियों में मृत लोगों के नाम और गलत फोटो की शिकायतें उभरीं, जिससे ECI पर पक्षपातपूर्ण होने के आरोप लगे।
BJP-JD(U) गठबंधन ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया, जबकि विपक्ष ने चुनाव बहिष्कार की धमकी दी।ECI ने 19 अगस्त 2025 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में 28 प्रमुख पहलों का उल्लेख किया, जिसमें बिहार SIR, मृत्यु पंजीकरण डेटा को मतदाता सूची से लिंक करना और राजनीतिक दलों के साथ नियमित संवाद शामिल हैं। आयोग ने स्पष्ट किया कि देशव्यापी SIR के लिए सभी CEO ने प्रस्तुतियां दीं, जिसमें बिहार के अनुभवों से सीखा गया। अब, SIR रोलआउट से पहले सभी-पार्टी मीटिंग्स अनिवार्य होंगी, जिसमें 28,000 से अधिक प्रतिनिधियों को शामिल किया गया।
यह कदम बिहार के विवाद से प्रेरित है, जहां पूर्व परामर्श की कमी ने तनाव बढ़ाया।देशव्यापी SIR का उद्देश्य लगभग 100 करोड़ मतदाताओं की सत्यापन है, जो 2003-2006 की अंतिम SIR को आधार बनाएगा। उत्तराखंड जैसे राज्यों में पुरानी सूचियां ऑनलाइन उपलब्ध हैं। ECI का कहना है कि यह संवैधानिक दायित्व है, लेकिन विपक्ष चिंतित है कि यह NDA को लाभ पहुंचाएगा। तेजस्वी यादव ने दावा किया कि उनका नाम भी सूची से हटा। आयोग ने आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को अस्वीकार करने का फैसला लिया, लेकिन अदालत के सुझाव पर लचीलापन दिखाया।यह बदलाव लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है।
पूर्व परामर्श से विश्वास बहाल होगा, बहिष्कार की आशंका कम होगी। हालांकि, ECI को पारदर्शिता बढ़ानी होगी, जैसे हटाए नामों की सूची सार्वजनिक करना। बिहार का सबक सिखाता है कि निर्वाचन प्रक्रिया में सभी हितधारकों की भागीदारी जरूरी है। यदि ठीक से लागू हुआ, तो यह स्वच्छ चुनाव सुनिश्चित करेगा, अन्यथा नई विवादों को जन्म दे सकता है। राजनीतिक दलों को भी सहयोग करना चाहिए। कुल मिलाकर, यह कदम भारतीय लोकतंत्र के लिए सकारात्मक है, जो समावेशी और निष्पक्ष प्रक्रिया की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
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