लखनऊ, 7 अगस्त 2025। Dimple Yadav: समाजवादी पार्टी (सपा) इन दिनों दोहरे संकट से जूझ रही है। सपा सांसद डिंपल यादव पर मौलाना साजिद रशीदी की कथित अपमानजनक टिप्पणी और इस मुद्दे पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव की चुप्पी ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है। इस विवाद को भुनाने में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कोई कसर नहीं छोड़ रही, जिसने सपा पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाकर इसे राजनीतिक हथियार बना लिया है।
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यह घटना 26 जुलाई 2025 को शुरू हुई, जब डिंपल यादव अपने पति अखिलेश यादव और अन्य सपा सांसदों के साथ संसद के पास एक मस्जिद में गई थीं। इस दौरान उनकी पोशाक पर मौलाना रशीदी ने एक टीवी डिबेट में आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसे महिला विरोधी और धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाला बताया गया। मौलाना रशीदी ने डिंपल यादव के साड़ी पहनने और सिर न ढकने को इस्लामी परंपराओं के खिलाफ बताया, जिसके बाद लखनऊ के विभूति खंड थाने में उनके खिलाफ प्रवेश यादव नामक सपा कार्यकर्ता की शिकायत पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 79 (महिला की गरिमा का अपमान), 196 (धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा देना), और 197 (राष्ट्रीय एकता के खिलाफ कथन) के तहत FIR दर्ज की गई।
इस टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर तीव्र प्रतिक्रियाएं उकसाईं और भाजपा ने इसे सपा के खिलाफ आक्रामक अभियान का आधार बना लिया। भाजपा नेताओं, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की महिला और बाल विकास मंत्री बेबी रानी मौर्य और सांसद बांसुरी स्वराज ने अखिलेश यादव की चुप्पी पर सवाल उठाए। मौर्य ने कहा, “अखिलेश की खामोशी वोटबैंक की राजनीति को दर्शाती है। क्या वह अपनी पत्नी के अपमान को स्वीकार कर रहे हैं?”
लखनऊ में भाजपा विधान परिषद सदस्य सुभाष यदुवंश ने अटल चौक पर पोस्टर लगवाए, जिनमें लिखा था, “पत्नी के अपमान पर चुप रहने वाला प्रदेश की बहन-बेटियों की सुरक्षा क्या करेगा?” ये पोस्टर बाद में हटा दिए गए, लेकिन इनका सोशल मीडिया पर व्यापक प्रभाव पड़ा। दूसरी ओर, डिंपल यादव ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भाजपा को मणिपुर में महिलाओं पर अत्याचार और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सेना पर की गई टिप्पणियों के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिए था।
उन्होंने मस्जिद दौरे को सामाजिक मुलाकात बताया और भाजपा पर मुद्दों से ध्यान भटकाने का आरोप लगाया। सपा सांसद इकरा हसन ने भी मौलाना की टिप्पणी की निंदा की और इसे सामाजिक बहिष्कार योग्य बताया। हालांकि, सपा की इस प्रतिक्रिया को कई राजनीतिक विश्लेषकों ने कमजोर माना है। उनका कहना है कि अखिलेश की चुप्पी और सपा का नरम रुख महिला मतदाताओं के बीच गलत संदेश दे सकता है। खासकर जब 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं।
उत्तर प्रदेश में महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही है और डिंपल यादव की सादगी और साड़ी पहनने का अंदाज ग्रामीण महिलाओं में लोकप्रिय है। ऐसे में, यह विवाद सपा की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। भाजपा ने इस मुद्दे को संसद से सड़क तक ले जाकर सपा को घेरने की रणनीति अपनाई है। 28 जुलाई को एनडीए सांसदों ने संसद के मकर द्वार पर प्रदर्शन किया, जिसमें डिंपल के अपमान को “महिलाओं की गरिमा पर हमला” बताया गया।
सपा ने जवाब में भाजपा पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया, लेकिन पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर एकजुटता की कमी साफ दिख रही है। इस विवाद ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया तनाव पैदा कर दिया है, और आने वाले दिनों में यह और गहरा सकता है।
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