झारखंड की राजधानी रांची के पिस्का मोड़ स्थित टंगराटोली बस्ती शुक्रवार सुबह एक बड़े हादसे का गवाह बनी। यहां एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय का पुराना और जर्जर भवन अचानक भरभराकर गिर गया। हादसे में 40 वर्षीय सुरेश बैठा की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि तीन अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। यह घटना सुबह करीब 7:30 से 8:00 बजे के बीच घटी, जब अधिकतर लोग दिन की शुरुआत कर रहे थे। बताया जा रहा है कि यह स्कूल भवन कोविड काल से ही बंद था और जर्जर हालत में था। इसके बावजूद लोग बारिश और धूप से बचने के लिए उसमें शरण लेते थे। हादसे के वक्त चार लोग उसी जर्जर भवन में मौजूद थे।
हादसे में एक की मौत, तीन की हालत गंभीर
हादसे में जान गंवाने वाले सुरेश बैठा स्थानीय निवासी थे। वहीं घायल हुए तीन अन्य युवकों की पहचान रोहित तिर्की, प्रीतम और नितिन तिर्की के रूप में हुई है। सभी को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जानकारी के मुताबिक एक घायल की कमर और दूसरे का पैर टूट गया है। पुलिस और स्थानीय लोगों ने मिलकर तुरंत मलबा हटाने का काम शुरू किया और घायलों को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया।
सड़क पर शव रखकर फूटा आक्रोश
हादसे के बाद टंगराटोली बस्ती में गुस्सा फूट पड़ा। आक्रोशित लोगों ने मृतक सुरेश बैठा का शव सड़क पर रखकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनका साफ कहना था कि यह हादसा प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है।
प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि:
- मृतक के परिवार को उचित मुआवजा दिया जाए।
- घायलों के इलाज का पूरा खर्च सरकार उठाए।
- जर्जर स्कूल भवन को तत्काल ध्वस्त किया जाए, ताकि फिर कोई जान न जाए।
प्रशासन की लापरवाही पर उठे सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह स्कूल कोविड काल के बाद से ही बंद पड़ा था और उसकी हालत बहुत ही खस्ताहाल हो चुकी थी। इसके बावजूद प्रशासन ने अब तक इसे गिराने की जहमत नहीं उठाई। गांव वालों ने बताया कि कई बार उन्होंने प्रशासन को इसकी जानकारी दी थी, लेकिन हर बार अनसुना कर दिया गया। टंगराटोली के रहने वाले मोहन तिर्की ने कहा,
“सरकारी स्कूल की हालत किसी खंडहर से कम नहीं थी। हम कई बार शिकायत कर चुके थे, लेकिन किसी ने नहीं सुना। अब एक आदमी की जान गई है, शायद अब नींद खुले!”
रात में रुके थे लोग, सुबह टूटा कहर
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, गुरुवार की रात को चार से पांच लोग उस पुराने स्कूल भवन में सोए हुए थे। बारिश से बचने के लिए अक्सर लोग इस भवन का सहारा लेते थे। शुक्रवार सुबह जब वे अभी जाग ही रहे थे, तभी पूरा भवन अचानक ढह गया और जानलेवा हादसा हो गया।
सवालों के घेरे में सरकारी जिम्मेदारी
यह घटना न सिर्फ एक जान लेने वाली त्रासदी है, बल्कि यह सरकारी उदासीनता का जीता-जागता उदाहरण भी है। एक ओर सरकार “स्मार्ट क्लास” और “डिजिटल एजुकेशन” की बातें करती है, दूसरी ओर गांव-कस्बों के सरकारी स्कूल जर्जर होकर मौत का घर बनते जा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों ऐसे खतरनाक ढांचों को समय रहते गिराया नहीं जाता? और क्यों हादसे होने के बाद ही प्रशासन हरकत में आता है?
निष्कर्ष:
टंगराटोली का यह हादसा सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं है, यह प्रशासनिक उदासीनता की कीमत पर गई जान है। लोग आक्रोशित हैं, डरे हुए हैं और अब न्याय की मांग कर रहे हैं। प्रशासन को अब जागना होगा, सिर्फ मुआवजे से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। आगे की घटनाओं को रोकना जरूरी है — इससे पहले कि और कोई परिवार उजड़ जाए।