लखनऊ में साइबर अपराध पर बड़ा प्रहार: डिजिटल अरेस्ट घोटाले के दोषी को 7 साल की सजालखनऊ, 18 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में साइबर अपराध के खिलाफ एक महत्वपूर्ण फैसले ने लोगों का ध्यान खींचा है। लखनऊ की एक स्थानीय अदालत ने डिजिटल अरेस्ट घोटाले में शामिल एक साइबर ठग को सात साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। यह मामला डिजिटल अरेस्ट के जरिए लोगों को डराने और ठगने से जुड़ा है, जिसमें आरोपी ने एक बुजुर्ग महिला से 36 लाख रुपये की ठगी की थी। इस फैसले ने न केवल साइबर अपराधियों के लिए एक सख्त संदेश दिया है, बल्कि आम लोगों में डिजिटल सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी काम किया है।
क्या था डिजिटल अरेस्ट घोटाला?
मामला 27 अगस्त, 2024 का है, जब लखनऊ के गोमतीनगर निवासी एक 67 वर्षीय बुजुर्ग महिला को एक कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को कूरियर कंपनी का कर्मचारी बताया और कहा कि उनके नाम से एक पार्सल में नशीले पदार्थ पाए गए हैं। इसके बाद, एक अन्य व्यक्ति ने फोन पर खुद को मुंबई क्राइम ब्रांच का अधिकारी बताते हुए महिला को डिजिटल अरेस्ट का डर दिखाया। ठगों ने दावा किया कि उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग और ड्रग तस्करी का केस दर्ज है और जांच के लिए उन्हें डिजिटल रूप से हिरासत में लिया जा रहा है। आरोपियों ने महिला को धमकाया कि अगर उन्होंने सहयोग नहीं किया तो उन्हें जेल जाना पड़ेगा। इस डर के माहौल में, ठगों ने महिला से उनके बैंक खाते की जानकारी मांगी और 36 लाख रुपये की रकम अपने खाते में ट्रांसफर करवा ली। पीड़ित महिला ने बाद में इसकी शिकायत गोमतीनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई, जिसके बाद साइबर क्राइम सेल ने मामले की जांच शुरू की।
पुलिस की त्वरित कार्रवाई और गिरफ्तारी
लखनऊ पुलिस की साइबर क्राइम सेल ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए मुख्य आरोपी सूरज यादव को गिरफ्तार किया। सूरज यादव, जो मध्य प्रदेश के भोपाल का रहने वाला है, इस घोटाले का मास्टरमाइंड था। पुलिस ने उसके पास से कई बैंक खातों की जानकारी, मोबाइल फोन, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बरामद किए, जो इस अपराध में इस्तेमाल किए गए थे। जांच में पता चला कि सूरज एक संगठित साइबर अपराधी गिरोह का हिस्सा था, जो देशभर में डिजिटल अरेस्ट के नाम पर लोगों को निशाना बनाता था।पुलिस ने बताया कि इस तरह के घोटालों में अपराधी आमतौर पर बुजुर्गों और कम तकनीकी जानकारी रखने वाले लोगों को निशाना बनाते हैं। वे फर्जी कॉल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, और धमकी भरे मैसेज के जरिए पीड़ितों को डराते हैं और उनकी बचत लूट लेते हैं। लखनऊ के डीसीपी (साइबर क्राइम) आलोक राय ने कहा, “यह एक संगठित अपराध था, जिसमें ठगों ने तकनीक का दुरुपयोग कर लोगों को ठगा। हमारी टीम ने सूरज यादव को पकड़ने के लिए तकनीकी और पारंपरिक जांच का सहारा लिया।”
अदालत का ऐतिहासिक फैसला
लखनऊ की जिला अदालत ने इस मामले में सुनवाई के बाद सूरज यादव को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 506 (आपराधिक धमकी), और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 66 डी के तहत दोषी पाया। अतिरिक्त जिला जज प्रथम अरुण कुमार राय ने सूरज को सात साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई और साथ ही 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के अपराध समाज में डर और अविश्वास पैदा करते हैं, इसलिए सख्त सजा जरूरी है।जज ने यह भी निर्देश दिया कि पीड़ित महिला को 36 लाख रुपये की रकम में से बरामद राशि का भुगतान किया जाए। इस फैसले को साइबर अपराध के खिलाफ एक मजबूत कदम माना जा रहा है, जो अन्य अपराधियों के लिए भी एक चेतावनी है।
साइबर अपराध के खिलाफ जागरूकता की जरूरत
इस मामले ने एक बार फिर साइबर अपराध के बढ़ते खतरे को उजागर किया है। लखनऊ पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे अनजान नंबरों से आने वाले कॉल्स पर भरोसा न करें और किसी भी तरह की धमकी या डराने वाले कॉल की सूचना तुरंत पुलिस को दें। डीसीपी आलोक राय ने कहा, “लोगों को चाहिए कि वे अपनी बैंक डिटेल्स, ओटीपी, या अन्य निजी जानकारी किसी के साथ साझा न करें। साइबर ठग अक्सर सरकारी अधिकारी बनकर लोगों को डराते हैं। ऐसी स्थिति में तुरंत नजदीकी पुलिस स्टेशन या साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर संपर्क करें।”
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
इस फैसले ने न केवल साइबर अपराधियों के लिए एक सख्त संदेश दिया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि भारतीय न्याय व्यवस्था डिजिटल अपराधों के खिलाफ गंभीर है। यह मामला उन हजारों लोगों के लिए राहत की खबर है, जो साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं। साथ ही, यह पुलिस और प्रशासन के लिए एक चुनौती भी है कि वे साइबर अपराध के नए-नए तरीकों से निपटने के लिए अपनी तकनीकी क्षमताओं को और मजबूत करें।लखनऊ में यह सजा साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। यह न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि समाज में डिजिटल सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी एक अवसर है।