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पुलिस की तकनीकी कमजोरी ने ठगों को बनाया राजा!
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हर 8 मिनट में एक डिजिटल ठगी
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यूपी में 2024 के डिजिटल अरेस्ट मामलों में 882% उछाल
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25 करोड़ की हानि से लाखों परिवार तबाह!
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NCRB रिपोर्ट का खुलासा: 2021 के 8,829 से 2024 के अनुमानित 50,000+ केस, यूपी में प्रति लाख 4.3 अपराध दर के साथ पुलिस की लचर जांच ने बढ़ाई मुसीबत
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भारत में 2024 की 22,845 करोड़ की साइबर लूट में यूपी का बड़ा हिस्सा: 1,200+ डिजिटल अरेस्ट केस, महज करोड़ों की रिकवरी से पीड़ितों की पुकार अनसुनी!
नई दिल्ली/लखनऊ से विशेष रिपोर्ट: एक जांच पत्रकार की नजर से….
लखनऊ 23 अगस्त 2025। Cyber Crime: उत्तर प्रदेश की विशाल आबादी और तेजी से फैलते डिजिटल नेटवर्क के बीच एक अंधेरा साया मंडरा रहा है – साइबर अपराध का साया, जो हर दिन हजारों जिंदगियों को चुपके से तबाह कर रहा है। जांच से पता चलता है कि यह कोई सामान्य समस्या नहीं, बल्कि एक संगठित गिरोहों की साजिश है, जहां ठग विदेशी सर्वरों से ऑपरेट करते हैं और पुलिस की कमजोरियां उनका सबसे बड़ा हथियार बन गई हैं।
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट्स और हालिया सरकारी डेटा के आधार पर, राज्य में साइबर अपराधों की संख्या में भारी उछाल आया है, लेकिन पुलिस की सुस्ती और संसाधनों की कमी ने रिकवरी को नामुमकिन बना दिया है। आइए, इस समस्या की गहराई में उतरते हैं और देखते हैं कि कैसे लाखों पीड़ित न्याय की आस में भटक रहे हैं। सबसे पहले आंकड़ों की बात करें। NCRB के अनुसार, 2021 में उत्तर प्रदेश में साइबर अपराध के 8,829 मामले दर्ज हुए थे, जो देश में दूसरे स्थान पर था।
अधर में लटकी जांच
2022 में यह संख्या बढ़कर 13,155 हो गई, जिसमें से अधिकांश मामलों में जांच अधर में लटकी रही। लेकिन 2024 का साल साइबर ठगों के लिए ‘स्वर्ण युग’ साबित हुआ। पूरे भारत में साइबर अपराधों में 400% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई और उत्तर प्रदेश इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहा है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 में राज्य में डिजिटल अरेस्ट जैसे नए स्कैम में 1,200 से अधिक मामले सामने आए, जिसमें पीड़ितों ने कुल 25 करोड़ रुपये गंवाए। पूरे देश में डिजिटल अरेस्ट मामलों में 882% की भयानक वृद्धि हुई और यूपी सबसे प्रभावित राज्यों में शामिल है।
प्रयागराज जैसे शहर में ही 2024 में 66 मामले दर्ज हुए, लेकिन रिकवरी की दर मात्र 6.69% रही। राज्य स्तर पर, 2022-2024 के बीच अनुमानित 34,000 से अधिक मामलों में ठगी का आंकड़ा अरबों में पहुंच चुका है, लेकिन पुलिस की रिकवरी कुछ करोड़ों तक सिमटी है।
डॉक्टर से ठगे 2. 81 करोड़
ये आंकड़े महज संख्याएं नहीं हैं, इनके पीछे असली कहानियां हैं। उदाहरण के लिए, लखनऊ के एक डॉक्टर को 2024 में डिजिटल अरेस्ट स्कैम में फंसाकर 2.81 करोड़ रुपये ठग लिए गए। ठगों ने खुद को CBI अधिकारी बताकर वीडियो कॉल पर धमकाया और पैसे ट्रांसफर करवा लिए। इसी तरह, वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एसपी ओसवाल से 7 करोड़ रुपये की ठगी हुई।
जांच से पता चला कि अधिकांश ठग कंबोडिया, म्यांमार और चीन जैसे देशों से ऑपरेट कर रहे हैं, जहां से वे फिशिंग, फर्जी निवेश स्कीम्स और सेक्सटॉर्शन जैसे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। NCRB रिपोर्ट बताती है कि 2022 में यूपी देश में तीसरे स्थान पर था, लेकिन 2024 तक छोटे शहर जैसे देवघर, नूह और मथुरा ठगों के नए अड्डे बन चुके हैं, जहां अपराध 900% बढ़े हैं।
ग्रामीण इलाकों में 400% वृद्धि दर्ज हुई है, और हर 8 मिनट में एक साइबर फ्रॉड हो रहा है।
पीड़ितों में बुजुर्ग, महिलाएं और युवा सबसे ज्यादा हैं, जो डर या शर्म के कारण चुप रहते हैं। अब सवाल पुलिस की भूमिका पर। उत्तर प्रदेश पुलिस ने ‘क्राइम GPT’ और ‘ट्रिनेत्र 2.0’ जैसी AI प्रणालियां लॉन्च की हैं, लेकिन ये बढ़ते अपराधों के सामने नाकाफी साबित हो रही हैं।
पुलिस की वेबसाइट uppolice.gov.in पर साइबर क्राइम सेल की जानकारी है, लेकिन विस्तृत आंकड़े या रिपोर्ट्स का अभाव है।
@UPPOLICE के एक्स (ट्विटर) हैंडल पर हालिया पोस्ट्स से पता चलता है कि वे गिरफ्तारियां और रिकवरी की खबरें साझा करते हैं, जैसे जुलाई 2024 में गाजियाबाद पुलिस ने शेयर ट्रेडिंग ठगी में 2 आरोपियों को गिरफ्तार कर 36 लाख रुपये रिकवर किए, लेकिन कुल रिकवरी दर 7% से कम है। NCRB के मुताबिक, 90% मामले बिहार, झारखंड जैसे राज्यों से शुरू होते हैं, लेकिन अंतरराज्यीय सहयोग की कमी से जांच अटक जाती है।
पुलिस की प्रमुख कमियां जांच में उजागर हुईं
- तकनीकी ट्रेनिंग की कमी, स्टाफ की भारी कमी और संसाधनों का अभाव।
- साइबर सेल में विशेषज्ञों की संख्या नगण्य है, और जांच की गति सुस्त है
- 2021 में लखनऊ में 1,067 मामले दर्ज हुए, लेकिन अधिकांश अभी भी पेंडिंग हैं।
पीड़ित बताते हैं कि cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करने के बाद भी FIR में देरी होती है और कई बार मामला लोकल थानों को भेज दिया जाता है जहां कोई कार्रवाई नहीं होती।
एक जांची गई घटना में, ई-गवर्नेंस विभाग ने साइबर अटैक का सामना किया लेकिन पुलिस को सूचित किए बिना संभाला, जिससे सबूत नष्ट हो गए। अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमी से ठग बच निकलते हैं और रिकवरी दर 7% से नीचे है जबकि ठग करोड़ों कमा रहे हैं। केंद्र की ‘साइबर क्राइम प्रिवेंशन अगेंस्ट वुमन एंड चिल्ड्रन’ स्कीम के तहत 132.93 करोड़ दिए गए, लेकिन यूपी में प्रभाव नजर नहीं आता। इन कमियों का सीधा असर पीड़ितों पर पड़ रहा है। 2024 में भारत ने साइबर अपराध से 22,845 करोड़ गंवाए, जिसमें यूपी का हिस्सा बड़ा है। राज्य में अपराध दर प्रति लाख 7.4 है, जो देश में सबसे ऊंची है। किशोर सेक्सटॉर्शन के शिकार हो रहे हैं, परिवार शर्म से चुप रहते हैं। आर्थिक बोझ इतना कि निवेशक डरते हैं, कारोबार ठप हो रहा है और रोजगार प्रभावित हो रहा है। जनवरी-अप्रैल 2024 में ही डिजिटल अरेस्ट से 120 करोड़ की हानि हुई।
समाधान के रास्ते क्या हैं?
- पुलिस को AI और मशीन लर्निंग पर ट्रेनिंग दी जाए, क्राइम GPT को प्रभावी बनाया जाए।
- साइबर क्राइम पोर्टल को मजबूत किया जाए, हेल्पलाइन 1930 को 24×7 सक्रिय रखा जाए।
- सरकार NCRB और CERT-In के साथ मिलकर काम करें और जन जागरूकता अभियान चलायें, क्योंकि रोकथाम इलाज से बेहतर है।
अंत में, उत्तर प्रदेश में साइबर अपराध की यह सुनामी पुलिस की नाकामी का प्रमाण है। अगर अब भी नहीं जागे, तो लाखों परिवार बर्बाद हो जाएंगे। सरकार, पुलिस और समाज को एकजुट होकर इस डिजिटल युद्ध में उतरना होगा, वरना डिजिटल इंडिया का सपना साइबर अंधेरे में समा जाएगा। जांच जारी है, और उम्मीद है कि जल्द कार्रवाई से पीड़ितों को न्याय मिलेगा।
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