नई दिल्ली, 24 अक्टूबर 2025। Chhath Puja 2025: देश के पूर्वी भाग में आस्था का सूर्योदय होने वाला है। छठ महापर्व की शुरुआत कल, 25 अक्टूबर 2025 को नहाय-खाय के साथ हो रही है, जब लाखों महिलाएं कठिन व्रत धारण कर सूर्य देव और छठी माई की आराधना में लीन हो जाएंगी।
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यह चार दिवसीय अनुष्ठान न केवल बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए, बल्कि प्रवासी बिहारियों के लिए भी घर वापसी का संदेश लेकर आता है। छठ की तैयारी में गांव-शहर सज-धज रहे हैं, जहां नदियों-घाटों पर साफ-सफाई और पूजा सामग्री की होड़ मची हुई है। इस पर्व में प्रकृति, परिवार और स्वास्थ्य की कामना के साथ आस्था का दीप प्रज्वलित होता है, जो अंधविश्वासों से परे सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। छठ पूजा का पंचांगानुसार निर्धारण कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठी तिथि पर होता है। वर्ष 2025 में यह 25 अक्टूबर (शनिवार) से आरंभ होकर 28 अक्टूबर (मंगलवार) तक चलेगा।

पहला दिन ‘नहाय-खाय’ का है, जहां व्रती सूर्योदय से पूर्व नहाकर पवित्र जल में स्नान करती हैं। इसके बाद लौकी, चावल, दाल और गुड़ से बने सात्विक भोजन का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। यह व्रत की शुरुआत का प्रतीक है, जो शुद्धता और संयम का संदेश देता है। व्रती महिलाएं अब 36 घंटे का निर्जला उपवास रखेंगी, जो कठिनाई के बावजूद आस्था की जीत का उदाहरण है।दूसरा दिन ‘खरना’ (26 अक्टूबर) पर व्रती रात्रि में गुड़ की खीर और चावल का प्रसाद बनाती हैं, जिसे परिवार के साथ बांटा जाता है।
तीसरे दिन ‘संध्या अर्घ्य’ (27 अक्टूबर) में सूर्यास्त के समय छठी माई को ठेकुआ, फल और जल का अर्घ्य अर्पित किया जाता है। घाटों पर उमड़ते भक्तों की भीड़ और दीपमालाओं का नजारा मनमोहक होता है। अंतिम दिन ‘उषा अर्घ्य’ (28 अक्टूबर) पर सूर्योदय के समय उगते सूरज को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होता है। प्रसाद के रूप में बनाए गए ठेकुएं और फल परिवार में वितरित किए जाते हैं। छठ का महत्व असीम है। यह सूर्य देव की सात्विक उपासना है, जो विटामिन डी की कमी दूर कर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है। पौराणिक कथाओं में द्रौपदी और रामायण के प्रसंगों से जुड़ा यह पर्व परिवार की एकता, संतान प्राप्ति और समृद्धि की कामना करता है।
बिहार सरकार ने इस वर्ष पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक मुक्त छठ की अपील की है, जबकि दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में प्रवासी समुदाय घाटों पर छठ मंडप सजाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पर्व महिलाओं की सहनशक्ति का प्रतीक है, जो आधुनिक जीवन में तनावमुक्ति का स्रोत बन रहा है। इस छठ पर कोविड के बाद सामूहिकता की वापसी देखने को मिलेगी।
लाखों लोग ट्रेनों से बिहार लौट रहे हैं, जिससे रेलवे ने विशेष ट्रेनें चलाई हैं। छठ न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक उत्सव है, जहां जाति-धर्म भूलकर लोग एक परिवार बन जाते हैं। आस्था की इस लहर में सूर्य की किरणें हर घर को रोशन करें, यही कामना है। छठ महापर्व हमें सादगी और प्रकृति के प्रति श्रद्धा सिखाता है, जो आज के भागदौड़ भरे जीवन में प्रासंगिक है। जय छठी माई!
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