बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर चल रहे विवाद ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में नया मोड़ ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कदम लोकतंत्र के मूल में मतदान के अधिकार को प्रभावित कर सकता है। कोर्ट ने प्रक्रिया को रोकने से इनकार करते हुए चुनाव आयोग को आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को सत्यापन के लिए शामिल करने का सुझाव दिया।जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जोयमाला बागची की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “हमारी समस्या आपकी प्रक्रिया से नहीं है, बल्कि इसकी टाइमिंग से है। इतने बड़े पैमाने पर 7.9 करोड़ मतदाताओं की जांच इतने कम समय में कैसे संभव है? इसे चुनाव से जोड़ना उचित नहीं है।” कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि जब यह प्रक्रिया नागरिकता की पहचान से जुड़ी है, तो आधार जैसे व्यापक रूप से स्वीकृत दस्तावेज को क्यों शामिल नहीं किया गया।
विवाद की जड़ और याचिकाएं
चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य पात्र मतदाताओं को शामिल करना और गैर-पात्र मतदाताओं को हटाना था। आयोग ने इसके लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की, जिसमें आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को शामिल नहीं किया गया। इस फैसले के खिलाफ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल समेत कई विपक्षी नेताओं और संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह प्रक्रिया मनमानी और भेदभावपूर्ण है, जिससे गरीब, प्रवासी मजदूर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के मतदाताओं को बाहर करने का खतरा है।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में दलील दी कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत जरूरी है। उन्होंने कहा कि बिहार में 2003 के बाद से ऐसी गहन समीक्षा नहीं हुई, और तेजी से शहरीकरण, प्रवास, और गैर-नागरिकों के नाम शामिल होने की वजह से यह कदम जरूरी है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए इसे सूची से बाहर रखा गया। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क पर सवाल उठाते हुए कहा कि नागरिकता का मामला गृह मंत्रालय के दायरे में आता है, न कि चुनाव आयोग के।
विपक्ष का आरोप और सड़क पर विरोध
बिहार में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इस प्रक्रिया को सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में मतदाताओं को प्रभावित करने की साजिश करार दिया है। बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव ने पटना में एक विरोध मार्च का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने इसे “वोटबंदी” और मतदाताओं के अधिकारों पर हमला बताया। राहुल गांधी ने कहा, “यह न केवल आपके वोट को चुराने की कोशिश है, बल्कि आपके भविष्य को भी प्रभावित करेगा।”
कोर्ट का रुख और अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि यह संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन इसकी समयसीमा बहुत कम है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक जवाब दाखिल करने और 28 जुलाई को अगली सुनवाई के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि एक बार मतदाता सूची अंतिम रूप ले लेती है, तो इसे चुनौती देना मुश्किल होगा, जिससे मतदाताओं के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
निष्कर्ष
बिहार में मतदाता सूची संशोधन को लेकर चल रहा विवाद न केवल चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि समयबद्ध और समावेशी प्रक्रिया कितनी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख विपक्ष के लिए आंशिक राहत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन अंतिम फैसला 28 जुलाई को होने वाली सुनवाई पर निर्भर करेगा।