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Bihar SIR: बिहार SIR पड़ताल, मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाने में एक समान पैटर्न की गुत्थी

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  • चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल, मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में ज्यादा हटाए गए नाम
  • सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद भी बिहार में मतदाता सूची विवाद बरकरार

नई दिल्ली, 4 सितंबर 2025। Bihar SIR:  बिहार में 2025 विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए विशेष गहन संशोधन (SIR) के तहत मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाए जाने की प्रक्रिया ने विवादों को जन्म दिया है। एक मीडिया चैनल की गहन जांच में सामने आया है कि नाम हटाने की प्रक्रिया में एक समान पैटर्न देखने को मिल रहा है, जो कई सवाल खड़े करता है।

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इस पैटर्न में युवा मतदाताओं की असामान्य रूप से उच्च मृत्यु दर, जेंडर असमानता, और मुस्लिम-बहुल जिलों में ज्यादा नाम हटाए जाने की प्रवृत्ति शामिल है। यह मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, जहां पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।

SIR प्रक्रिया और नाम हटाने का पैटर्न

चुनाव आयोग ने जून 2024 में बिहार की मतदाता सूची के लिए SIR शुरू किया, जिसका उद्देश्य डुप्लिकेट, मृत, और स्थानांतरित मतदाताओं को हटाकर सूची को शुद्ध करना था।

1 अगस्त 2025 को प्रकाशित ड्राफ्ट मतदाता सूची में 7.24 करोड़ नाम थे, जो जनवरी 2025 की सूची से 65 लाख कम थे। द हिन्दू की विश्लेषण के अनुसार, हटाए गए नामों में 31 लाख महिलाएं और 25 लाख पुरुष शामिल थे, जो असामान्य है क्योंकि बिहार से पुरुषों का पलायन ज्यादा होता है।

जांच में आठ असामान्य पैटर्न सामने आए, जिनमें शामिल हैं, उच्च मृत्यु दर: 7,216 पोलिंग स्टेशनों पर 75% से अधिक हटाए गए नाम मृत्यु के कारण थे, जिसमें कई युवा मतदाता (50 वर्ष से कम) शामिल थे।

मुस्लिम-बहुल जिलों में ज्यादा हटाये गये। 2011 की जनगणना के आधार पर, मुस्लिम-बाहुल्य जिलों जैसे गोपालगंज और भागलपुर में असामान्य रूप से अधिक नाम हटाए गए।

सभी हटान मृत्यु के कारण हुए, 973 पोलिंग स्टेशनों पर सभी हटाए गए नाम केवल मृत्यु के कारण थे, जो सांख्यिकीय रूप से असंभव है।

पारदर्शिता और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका

SIR प्रक्रिया की शुरुआत से ही विपक्षी दलों, जैसे RJD, कांग्रेस, और CPI-ML, ने इसे मतदाता अधिकारों पर हमला करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया BJP के इशारे पर कुछ समुदायों को लक्षित कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त 2025 को चुनाव आयोग को 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सूची और कारणों को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि सूची सर्च करने योग्य होनी चाहिए और आधार कार्ड को पहचान के लिए स्वीकार किया जाए।

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18 अगस्त तक, चुनाव आयोग ने जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर सूची अपलोड की और इसे पंचायत कार्यालयों और सोशल मीडिया पर प्रचारित किया। हालांकि, कई मतदाताओं ने शिकायत की कि उन्हें अपनी स्थिति की जानकारी नहीं मिली। 1 सितंबर तक, 2.17 लाख लोगों ने नाम हटाने के लिए और 36,000 ने नाम जोड़ने के लिए आवेदन किया।

विवाद और डुप्लिकेट वोटर की समस्या

SIR की विश्वसनीयता पर सवाल तब और गहरे हो गए, जब द रिर्पोटर्स कलेक्टिव की जांच में 15 विधानसभा क्षेत्रों में 34,392 डुप्लिकेट वोटर पाए गए, जिनके पास एक ही नाम, रिश्तेदार का नाम और उम्र में मामूली अंतर के साथ दो वोटर आईडी थे। इसके अलावा, वाल्मीकिनगर में उत्तर प्रदेश के 5,000 से अधिक मतदाताओं के नाम बिहार की सूची में पाए गए, जो अवैध है।

भागलपुर में दो पाकिस्तानी मूल की महिलाओं के नाम मतदाता सूची में पाए गए, जिन्हें गृह मंत्रालय की जांच के बाद हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई। यह घटना SIR की सटीकता पर सवाल उठाती है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि SIR का उद्देश्य फर्जी मतदाताओं को हटाना और पात्र मतदाताओं को शामिल करना है, लेकिन प्रक्रिया में त्रुटियां संभव हैं।

बिहार SIR प्रक्रिया ने मतदाता सूची की शुद्धता के लिए आवश्यक कदम उठाने का दावा किया, लेकिन इसके पैटर्न ने निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं। मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों और महिलाओं के नामों की अधिक हटान, युवा मतदाताओं की असामान्य मृत्यु दर, और डुप्लिकेट वोटरों की मौजूदगी ने इस प्रक्रिया को विवादास्पद बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन मतदाताओं और विपक्ष का भरोसा जीतने के लिए और प्रयासों की जरूरत है। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी, जो बिहार विधानसभा चुनावों के लिए निर्णायक होगी।

 

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