नई दिल्ली, 19 सितंबर 2025। दिल्ली में हाल ही में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस ने भारतीय लोकतंत्र की नींव हिला दी। कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए ‘वोट चोरी’ के तथ्यों को सार्वजनिक किया। उन्होंने महाराष्ट्र और कर्नाटक के वोटर लिस्ट में फर्जीवाड़े के दस्तावेज पेश किए, जिसमें एक 10 अंकों का मोबाइल नंबर प्रमुखता से दिखाया गया। राहुल ने दावा किया कि यह नंबर फर्जी वोटरों की पहचान से जुड़ा है, जो एक ही व्यक्ति के नाम पर कई राज्यों में वोट डालने की साजिश का हिस्सा है।
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कर्नाटक के महादेवापुरा क्षेत्र में 1,00,250 वोटों की चोरी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग वोट चोरों की रक्षा कर रहा है। हमें डिजिटल मतदाता सूची सार्वजनिक करनी होगी ताकि पारदर्शिता आए।” इस कॉन्फ्रेंस ने न केवल विपक्ष को मजबूत किया, बल्कि आम जनता में भी चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए। राहुल ने लोगों से अपील की कि votechori.in/ecdemand पर जाकर या 9650003420 पर मिस्ड कॉल देकर इस मुहिम से जुड़ें। लेकिन इसी कॉन्फ्रेंस का एक अनजाना शिकार बन गया उत्तर प्रदेश का एक साधारण नागरिक।
प्रयागराज के अंजनी मिश्रा का नंबर वायरल
प्रयागराज के मेजा क्षेत्र के निवासी अंजनी मिश्रा, एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति, अचानक सुर्खियों में आ गये। राहुल गांधी द्वारा दिखाए गए उस दस्तावेज में लिखा मोबाइल नंबर उनका ही था। अंजनी ने बताया, “मैं कभी महाराष्ट्र या कर्नाटक नहीं गया। न ही किसी फर्जी वोटर से मेरा कोई लेना-देना है। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मेरा नंबर वायरल हो गया। अब हर मिनट फोन आ रहे हैं।” कॉल्स की बाढ़ इतनी तेज है कि अंजनी का फोन लगातार बज रहा है।
Election Commission of India must stop protecting Vote Chors.
They should release all incriminating evidence to Karnataka CID within 1 week. #VoteChoriFactory pic.twitter.com/Abiy1OHLQP
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 18, 2025
एक कॉलर ने तो उन्हें ही बताया कि “आपका नंबर फर्जी वोटर वाली लिस्ट में वायरल है।” अंजनी ने राहुल गांधी पर नंबर गलत तरीके से सार्वजनिक करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “यह मेरी निजता का उल्लंघन है। परिवार वाले डर गए हैं। क्या होगा अगर कोई गलतफहमी से हमला कर दे?” अंजनी का मामला यूपी के सैकड़ों निर्दोष लोगों की कहानी बन गया है, जहां राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की भेंट चढ़कर आम आदमी की जिंदगी बर्बाद हो रही है।
हर मिनट आ रही लोगों की कॉल
प्रेस कॉन्फ्रेंस के वायरल वीडियो के बाद उनका नंबर सोशल मीडिया पर फैल गया। हर मिनट एक नया अजनबी कॉल—कभी पूछताछ के लिए, कभी गालियां देने के लिए, तो कभी धमकी भरे संदेश। “रात को सो नहीं पाता। फोन साइलेंट रखता हूं, लेकिन वाइब्रेशन से नींद टूट जाती है,” अंजनी ने दर्द भरी आवाज में कहा। एक कॉल में तो किसी ने उन्हें ‘वोट चोर’ कहकर गाली दी। परिवार के सदस्य भी परेशान हैं, पत्नी और बच्चे बाहर निकलने से डरते हैं। अंजनी ने स्थानीय पुलिस से शिकायत की है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में निजता का अधिकार सुरक्षित रखना जरूरी है। राहुल गांधी के आरोपों ने चुनावी धांधली को उजागर तो किया, लेकिन निर्दोषों को निशाना बना दिया। यूपी जैसे राज्य में जहां डिजिटल साक्षरता कम है, ऐसे वायरल नंबर्स से ब्लैकमेलिंग या साइबर अपराध का खतरा बढ़ जाता है। अंजनी अब नया नंबर लेने की सोच रहे हैं, लेकिन पुरानी यादें आसानी से मिटेंगी नहीं।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि दस्तावेजों की जांच में आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह जैसे नाम केवल एक राज्य में ही वैध पाए गए। आयोग ने राहुल को सबूत पेश करने की चुनौती दी और कहा, “झूठे आरोपों के लिए माफी मांगें।” कर्नाटक सीआईडी ने भी आयोग को 18 पत्र लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं। इस विवाद ने राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी क्या वोटर लिस्ट में पारदर्शिता है? राहुल की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ अब देशव्यापी हो रही है। लेकिन अंजनी जैसे मामलों से सवाल उठता है: राजनीतिक लड़ाई में आम आदमी की गोपनीयता की कीमत कौन चुकाएगा? सरकार को सख्त साइबर कानून बनाने की जरूरत है। उम्मीद है कि यह तूफान लोकतंत्र को मजबूत करेगा, न कि निर्दोषों को तोड़ेगा।
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