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Amit shah: अमित शाह के प्रस्तावित कानून से 9 गैर-भाजपा नेताओं की कुर्सी खतरे में, कोई BJP नेता शामिल नहीं

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Amit shah

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लखनऊ, 22 अगस्त 2025। Amit shah: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में पेश किए गए तीन विधेयकों ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। ये विधेयक—संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025—प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और राज्य मंत्रियों को गंभीर आपराधिक आरोपों में 30 दिन तक हिरासत में रहने पर पद से हटाने का प्रावधान करते हैं।

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इस प्रस्तावित कानून के तहत, यदि कोई नेता 30 दिनों तक हिरासत में रहता है और उसे जमानत नहीं मिलती, तो वह स्वतः ही अपना पद खो देगा। यह कानून भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती और राजनीति में नैतिकता लाने के उद्देश्य से पेश किया गया है, लेकिन विपक्ष ने इसे “लोकतंत्र विरोधी” और “केंद्र की साजिश” करार दिया है। यदि यह कानून लागू होता, तो हाल के वर्षों में कई प्रमुख गैर-भाजपा नेता अपने मंत्रिपद खो सकते थे। सूत्रों के अनुसार, इस कानून का असर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, मनीष सिसोदिया और सतेन्द्र जैन समेत अन्य तीन गैर-भाजपा नेताओं पर पड़ता, जो गंभीर आपराधिक मामलों में हिरासत में रहे हैं।

इनमें से कोई भी नेता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नहीं है, जिसने विपक्ष को यह आरोप लगाने का मौका दिया कि यह कानून विशेष रूप से विपक्षी दलों को निशाना बनाने के लिए लाया गया है। उदाहरण के लिए, अरविंद केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति मामले में 2024 में छह महीने तक हिरासत में रखा गया था। इस कानून के तहत, वह 30 दिनों के बाद ही अपना पद खो देते। इसी तरह, हेमंत सोरेन और वी. सेंथिल बालाजी भी अपनी कुर्सी गंवा सकते थे। विपक्ष ने इस विधेयक को संविधान और संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे “क्रूर” और “लोकतंत्र विरोधी” करार देते हुए कहा कि यह कानून बिना दोष सिद्ध हुए किसी मुख्यमंत्री को हटाने का रास्ता खोलता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे “लोकतंत्र के लिए काला दिन” बताया, जबकि तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने इसे “सुपर आपातकाल” की शुरुआत करार दिया। विपक्ष का आरोप है कि केंद्रीय जांच एजेंसियां, जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), पहले ही विपक्षी नेताओं को निशाना बना रही हैं और यह कानून उन्हें और कमजोर करने का हथियार बनेगा।

ईडी के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में 193 राजनेताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए गए, लेकिन केवल दो को सजा हुई, जो इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि यह कानून राजनीति में नैतिकता और जवाबदेही को बढ़ावा देगा। अमित शाह ने स्वयं 2010 में गुजरात के गृह राज्य मंत्री के रूप में अपनी गिरफ्तारी का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था और अदालत द्वारा बरी होने तक कोई संवैधानिक पद नहीं लिया। उन्होंने विपक्ष पर “दोहरे मापदंड” अपनाने का आरोप लगाया।

विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया है, जिसमें 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा सदस्य शामिल होंगे। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि यह कानून संवैधानिक सिद्धांतों, जैसे “जब तक दोष सिद्ध न हो, निर्दोष” को कमजोर करता है। यह विधेयक संसद में दो-तिहाई बहुमत और आधे राज्यों की मंजूरी के बिना पारित नहीं हो सकता। विपक्ष का दावा है कि यह केवल एक “प्रचार स्टंट” है, क्योंकि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास आवश्यक संख्या नहीं है। इस बीच, यह कानून भारतीय राजनीति में एक नया विवाद बन गया है, जो केंद्र और विपक्ष के बीच तनाव को और बढ़ा रहा है।

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