नई दिल्ली, 23 अगस्त 2025। ADR Report: चुनाव सुधार संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक ताजा रिपोर्ट ने भारतीय राजनीति में एक चिंताजनक तथ्य को उजागर किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश के 30 मुख्यमंत्रियों में से 12, यानी 40 प्रतिशत, ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की घोषणा की है। इनमें से 10 मुख्यमंत्रियों पर हत्या की कोशिश, अपहरण, रिश्वतखोरी और आपराधिक धमकी जैसे गंभीर आरोप हैं। यह आंकड़े सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मौजूदा मुख्यमंत्रियों द्वारा पिछले विधानसभा चुनावों में दाखिल किए गए शपथपत्रों के विश्लेषण पर आधारित हैं।
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रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला खुलासा तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के बारे में है, जिनके खिलाफ सर्वाधिक 89 आपराधिक मामले दर्ज हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन 47 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर 19, कर्नाटक के सिद्धारमैया पर 13, और झारखंड के हेमंत सोरेन पर 5 मामले दर्ज हैं। इसके अलावा, महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस और हिमाचल प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुक्खू ने चार-चार मामले, केरल के पिनाराई विजयन ने दो, और पंजाब के भगवंत मान ने एक मामला घोषित किया है।
एडीआर की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 33 प्रतिशत मुख्यमंत्रियों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता और शासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब केंद्र सरकार ने तीन नए विधेयक पेश किए हैं, जिनमें प्रावधान है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक मामले में 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो उसे पद से हटा दिया जाएगा। सरकार का दावा है कि यह कदम राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए उठाया गया है।
हालांकि, विपक्ष ने इन विधेयकों को गैर-भाजपा शासित राज्यों को अस्थिर करने की साजिश करार दिया है। कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह कदम विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का प्रयास है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन विधेयकों का बचाव करते हुए कहा कि भ्रष्ट नेताओं को जेल से सरकार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
यह स्थिति भारतीय राजनीति में नेताओं की जवाबदेही और आपराधिक पृष्ठभूमि पर गंभीर चर्चा की मांग करती है। एक ओर जहां 40% मुख्यमंत्रियों पर आपराधिक मामले चिंता का विषय हैं, वहीं विपक्ष की आशंकाएं भी गंभीर हैं कि इन कानूनों का दुरुपयोग हो सकता है। एडीआर की यह रिपोर्ट न केवल राजनीतिक हलकों में बल्कि जनता के बीच भी बहस का विषय बनी है।
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