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बिहार चुनाव 2025: अगड़ी जातियों की अनदेखी, पिछड़े और दलितों पर दांव!

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पटना, 9जुलाई 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं, और इस बार सियासी दलों का फोकस पूरी तरह से पिछड़ी और अनुसूचित जातियों (SC/ST) पर केंद्रित है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, राज्य की सत्ता तक पहुंचने की राह अब इन समुदायों के वोटों से होकर गुजर रही है, जबकि परंपरागत रूप से प्रभावशाली मानी जाने वाली अगड़ी जातियां इस बार हाशिए पर नजर आ रही हैं। बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर होने वाले इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जनता दल यूनाइटेड (JD(U)), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस जैसे प्रमुख दल अपनी रणनीतियों को पिछड़े वर्गों (OBC), अति पिछड़े वर्गों (EBC) और दलित मतदाताओं के इर्द-गिर्द बना रहे हैं। 2023 में हुए जाति आधारित सर्वेक्षण ने इस रणनीति को और पुख्ता किया है, जिसमें सामने आया कि बिहार की 84.47% आबादी OBC, EBC, SC और ST समुदायों से आती है। इस सर्वेक्षण ने सियासी दलों को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर किया है।

पिछड़े और दलितों पर क्यों है जोर?

पिछले कुछ वर्षों में बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरणों ने गहरी जड़ें जमा ली हैं। RJD के नेता तेजस्वी यादव अपनी ‘MY-BAAP’ रणनीति के तहत मुस्लिम, यादव, बहुजन, अगड़े, आधी आबादी (महिलाएं) और गरीबों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, नीतीश कुमार की JD(U) और BJP भी EBC और OBC वोटरों को लुभाने के लिए नए-नए दांव आजमा रहे हैं। BJP ने हाल के वर्षों में अपनी हिंदुत्व की छवि के साथ-साथ पिछड़े समुदायों के लिए शिक्षा, कौशल विकास और बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों पर जोर दिया है। कांग्रेस भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। राहुल गांधी ने बिहार में कई रैलियों में जाति आधारित जनगणना और निजी क्षेत्र में आरक्षण जैसे मुद्दों को उठाकर दलित और पिछड़े वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश की है। पार्टी ने अपने बिहार प्रदेश अध्यक्ष को भी दलित समुदाय से चुनकर इस दिशा में एक रणनीतिक कदम उठाया है।

अगड़ी जातियां क्यों हाशिए पर?

बिहार की राजनीति में लंबे समय तक प्रभावशाली रही अगड़ी जातियां (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और कायस्थ) इस बार उपेक्षित दिख रही हैं। जानकारों का मानना है कि इन जातियों की आबादी कुल जनसंख्या का लगभग 15% ही है, जिसके कारण दल अब इनके बजाय बड़े वोट बैंक पर ध्यान दे रहे हैं। इसके अलावा, अगड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही BJP के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है, जिसके चलते अन्य दलों ने इन वोटरों को लुभाने की कोशिश कम कर दी है। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अगड़ी जातियों की अनदेखी से BJP को नुकसान हो सकता है, क्योंकि ये समुदाय अब तक पार्टी का मजबूत आधार रहे हैं। अगर ये वोटर नाराज हुए तो NDA की राह मुश्किल हो सकती है।

नई ताकतों का उदय

इस बार के चुनाव में प्रणब किशोर की जन सुराज पार्टी एक नया विकल्प बनकर उभरी है। यह पार्टी जाति आधारित राजनीति से हटकर विकास और सुशासन का नारा दे रही है, जो खासकर शहरी और युवा मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। इसके अलावा, AIMIM भी अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में जुटी है।

चुनावी मुद्दे और भविष्य

बिहार में बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचा जैसे मुद्दे इस बार भी अहम रहेंगे। लेकिन, जातिगत समीकरणों का प्रभाव इतना गहरा है कि ये मुद्दे कई बार पीछे छूट जाते हैं। जानकारों का मानना है कि जो दल पिछड़े और दलित वोटरों के साथ-साथ युवाओं और महिलाओं को जोड़ने में कामयाब होगा, वही सत्ता की चाबी हासिल करेगा। 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव न केवल राज्य की सियासत, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी गहरे प्रभाव डालेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी जाति की सियासत हावी रहेगी, या बिहार के मतदाता नई दिशा की ओर कदम बढ़ाएंगे

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