उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम सामने आया है, जहां औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ ने अपनी ही सरकार के नौकरशाही तंत्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मंत्री नंदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखकर अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि नौकरशाह उनके निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं और सरकारी कामकाज में जानबूझकर बाधाएं पैदा कर रहे हैं।
इस पत्र ने न केवल प्रशासनिक हलकों में हलचल मचाई है, बल्कि सियासी गलियारों में भी चर्चा का विषय बन गया है।मंत्री नंदी ने अपने पत्र में लिखा कि पिछले दो वर्षों से उनके द्वारा दिए गए निर्देशों को अधिकारियों ने नजरअंदाज किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी महत्वपूर्ण फाइलों को या तो दबा देते हैं या गायब कर देते हैं। इतना ही नहीं, नंदी ने यह भी कहा कि कुछ अधिकारी नियम-कानूनों को ताक पर रखकर अपने करीबियों को अनुचित लाभ पहुंचा रहे हैं।
उन्होंने विशेष रूप से कुछ मामलों की जांच के लिए दिए गए आदेशों का पालन न होने की शिकायत की और बताया कि जब उन्होंने फाइलों की मांग की, तो उन्हें बताया गया कि वरिष्ठ अधिकारियों ने इन्हें रोकने के आदेश दिए हैं।सूत्रों के अनुसार, नंदी के इस पत्र के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को गंभीरता से लिया है और इसकी जांच के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। सीएम कार्यालय ने इस मामले में तत्काल कार्रवाई के संकेत दिए हैं, जिससे यह साफ है कि सरकार इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले रही। दूसरी ओर, नंदी के मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने दावा किया है कि वे मंत्री के आरोपों का जवाब तैयार कर रहे हैं।
हालांकि, इस मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या योगी सरकार में मंत्रियों और नौकरशाही के बीच तालमेल की कमी है?यह पहली बार नहीं है जब योगी सरकार में नौकरशाही और मंत्रियों के बीच तनातनी की खबरें सामने आई हैं। इससे पहले भी दलित नेता और मंत्री दिनेश खटीक ने अधिकारियों पर उनकी अनदेखी करने का आरोप लगाया था। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि कुछ अधिकारी मानते हैं कि एक राज्यमंत्री को केवल सरकारी गाड़ी तक सीमित रखा जाना चाहिए। अब नंदी की शिकायत ने इस बहस को और हवा दे दी है कि क्या उत्तर प्रदेश में नौकरशाही का दबदबा सरकार के जनप्रतिनिधियों पर भारी पड़ रहा है?सियासी जानकारों का मानना है कि नंदी का यह कदम केवल प्रशासनिक शिकायत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं।
कुछ का कहना है कि नंदी, जो प्रयागराज से विधायक हैं, अपनी क्षेत्रीय और राजनीतिक ताकत को और मजबूत करने के लिए इस तरह का कदम उठा सकते हैं। वहीं, कुछ का मानना है कि यह योगी सरकार के भीतर की आंतरिक खींचतान का परिणाम हो सकता है।इस पूरे प्रकरण पर समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी तंज कसा है। सपा नेता अनुराग भदौरिया ने कहा कि योगी सरकार अपनी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की बात करती है, लेकिन उनके अपने मंत्री ही अधिकारियों की अनदेखी से परेशान हैं।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर चुटकी लेते हुए कहा कि जब सरकार के अपने लोग ही नौकरशाही से त्रस्त हैं, तो आम जनता का क्या हाल होगा?मामले की गंभीरता को देखते हुए यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और खुलासे हो सकते हैं। फिलहाल, नंदी के इस पत्र ने उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है, जिसका असर सरकार और प्रशासन दोनों पर पड़ सकता है।