नई दिल्ली, 20 नवंबर 2025। दिल्ली की तिहाड़ जेल, जो कभी सिर्फ सजा भुगतने की जगह मानी जाती थी, अब सुधार और पुनर्वास का नया केंद्र बन रही है। दिल्ली सरकार ने जेल नंबर-10 परिसर में एक आधुनिक गौशाला खोल दी है, जिसमें 100 देसी गायें रखी गई हैं। इसका मकसद कैदियों को ‘काऊ थेरेपी’ के जरिए मानसिक शांति देना, उनमें जिम्मेदारी का भाव जगाना और बंदी जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है।
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दिल्ली के जेल मंत्री कैलाश गहलोत ने गौशाला का उद्घाटन करते हुए बताया कि कई शोध बताते हैं कि गायों के साथ समय बिताने से तनाव कम होता है, ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और मन में करुणा व संवेदना बढ़ती है। कैदियों को रोज सुबह-शाम गायों की सेवा का मौका मिलेगा – चारा खिलाना, दूध दुहना, गोबर से उपले बनाना और गौशाला की सफाई करना। इससे न सिर्फ उनका दिमाग शांत रहेगा, बल्कि श्रम की आदत भी पड़ेगी।
इस गौशाला में गीर, साहिवाल और थारपारकर जैसी देसी नस्लों की गायें हैं। रोजाना 200-250 लीटर दूध निकलेगा, जो जेल के अंदर ही कैदियों को पौष्टिक आहार के रूप में दिया जाएगा। गोबर से बायोगैस प्लांट चलाया जाएगा, जिससे जेल किचन में खाना बनेगा। गोबर की खाद से जेल परिसर में ही सब्जियां उगाई जाएंगी। इस तरह पूरा प्रोजेक्ट आत्मनिर्भर और पर्यावरण-अनुकूल है।
जेल महानिदेशक संजय बेनीवाल ने बताया कि पहले चरण में 50 चुनिंदा कैदियों को गौशाला में काम करने का मौका दिया जा रहा है। ये वे कैदी हैं जो अच्छे आचरण के हैं और जिनकी सजा का अंतिम हिस्सा चल रहा है। बाद में और कैदियों को शामिल किया जाएगा। कई कैदी पहले से ही जेल में बेकरी, कारपेंटरी और योग का काम कर रहे हैं, अब गौशाला उनके लिए नई थेरेपी बनेगी। दिल्ली सरकार का मानना है कि सजा सिर्फ बंदी बनाकर नहीं, बल्कि विचार और व्यवहार बदलकर दी जानी चाहिए।
गाय भारतीय संस्कृति में मां के समान मानी जाती है, उसकी सेवा से कैदियों में ममता और जिम्मेदारी का भाव आएगा। विदेशों में भी जेलों में पेट थेरेपी (कुत्ता-बिल्ली के साथ समय बिताना) सफल रही है, भारत में गाय के साथ यह प्रयोग पहली बार हो रहा है। आने वाले दिनों में गौशाला में गोमूत्र से फिनाइल और दवाइयां बनाने की योजना भी है। जेल प्रशासन को उम्मीद है कि यह पहल कैदियों के पुनर्वास में मील का पत्थर साबित होगी और रिहाई के बाद भी वे समाज की मुख्यधारा में बेहतर ढंग से जुड़ सकेंगे।
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