नई दिल्ली, 13 नवंबर 2025। Delhi Pollution: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर अब ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया है, जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) कई इलाकों में 400 से ऊपर चढ़ चुका है। इस संकट पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए चिंता जताई है। जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने सुनवाई के दौरान कहा, “स्थिति बेहद गंभीर है। यहां दम घुट रहा है। यहां तक कि मास्क भी पर्याप्त नहीं हैं। यह पर्याप्त नहीं होगा।”
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उन्होंने वकीलों से आग्रह किया कि वे फिजिकल रूप से कोर्ट न आएं, बल्कि वर्चुअल माध्यम से पेश हों। जस्टिस नरसिम्हा ने चीफ जस्टिस के साथ चर्चा का भी उल्लेख किया, ताकि स्वास्थ्य जोखिमों को कम किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी दिल्ली-एनसीआर में फैले प्रदूषण के भयावह रूप को उजागर करती है। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही पराली जलाना, वाहनों का धुआं, निर्माण कार्य और औद्योगिक उत्सर्जन ने हवा को जहर बना दिया है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, दिल्ली का औसत AQI 380 के आसपास रहा, जबकि आनंद विहार और रोहिणी जैसे इलाकों में यह 450 को पार कर गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के मुताबिक, AQI 300 से ऊपर होने पर स्वास्थ्य पर तत्काल खतरा मंडराने लगता है, जो फेफड़ों और हृदय रोगों को बढ़ावा देता है।
कोर्ट ने अधिकारियों पर निशाना साधते हुए कहा कि यह प्रदूषण स्थायी क्षति पहुंचा सकता है। “यह स्थायी क्षति का कारण बनेगा,” जस्टिस नरसिम्हा ने चेतावनी दी। सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत सख्त कदम उठाने का निर्देश दिया, जिसमें स्कूल बंद करना, निर्माण रोकना और ऑड-ईवन लागू करना शामिल है। हालांकि, दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच समन्वय की कमी पर कोर्ट ने नाराजगी जताई।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन पड़ोसी राज्यों से पराली जलाने पर रोक जरूरी है। यह संकट केवल दिल्ली तक सीमित नहीं। एनसीआर के शहरों जैसे गुरुग्राम, नोएडा और फरीदाबाद में भी AQI ‘बहुत खराब’ स्तर पर है। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा रोगियों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ रहा है।

अस्पतालों में सांस संबंधी शिकायतों के केस 30% बढ़ गए हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता वंदना शिवा ने ट्वीट कर कहा, “प्रदूषण युद्ध का समय है। सरकारें जिम्मेदारियां निभाएं।” सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता उम्मीद जगाती है। अगली सुनवाई में कोर्ट GRAP के कार्यान्वयन पर रिपोर्ट मांगेग, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह मौसमी उपाय पर्याप्त हैं?
दीर्घकालिक समाधान जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा, हरित ऊर्जा और पराली प्रबंधन नीतियां ही असली राहत दे सकती हैं। दिल्ली की 2 करोड़ आबादी साफ हवा के इंतजार में त्रस्त है। यह समय है कि केंद्र, राज्य और स्थानीय निकाय एकजुट हों, वरना यह ‘गैस चैंबर’ जैसी स्थिति और बिगड़ सकती है। जागरूक नागरिकों को भी मास्क से आगे सोचना होगा- पेड़ लगाएं, कार पूलिंग अपनाएं। प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई अब सबकी है।
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