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Graha Prabhav: कमजोर ग्रह का जीवन पर प्रभाव और निवारण

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Graha Prabhav: ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की स्थिति जीवन के विभिन्न भावों को प्रभावित करती है। जब कोई ग्रह दूषित या निर्बल हो जाता है, तो संबंधित क्षेत्रों में असंतुलन पैदा होता है, जिससे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कष्ट उत्पन्न होते हैं। आइए, जानें कि प्रत्येक ग्रह की प्रतिकूल स्थिति से कौन-से दुख भुगतने पड़ सकते हैं। यह ज्ञान न केवल समस्याओं की पहचान में सहायक है, बल्कि उपायों की दिशा भी सुझाता है।

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सूर्य के अनिष्ट प्रभाव- आंतरिक अग्नि का संकट

सूर्य, जो सौर मंडल का केंद्र है, शरीर की जठराग्नि और ऊर्जा का प्रतीक है। इसकी कमजोरी से पाचन संबंधी विकार जैसे मंदाग्नि, ज्वर, क्षय रोग और अतिसार जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सरकारी नौकरी या नेतृत्व वाले व्यक्तियों को विरोध का सामना करना पड़ सकता है, जिससे आत्मविश्वास में कमी आती है।

चंद्रमा के प्रतिकूल प्रभाव- मन की अस्थिरता

जल तत्व प्रधान चंद्रमा मानसिक शांति का कारक है। इसकी निर्बलता जल से संबंधित भय पैदा करती है, जैसे बाढ़ या समुद्री दुर्घटनाएं। व्यक्ति अशांत, अनिर्णयी और अस्थिर मन का शिकार होता है, जिससे निर्णय लेने में कठिनाई और भावनात्मक उतार-चढ़ाव बढ़ जाते हैं।

मंगल के दूषित प्रभाव- उग्रता और खतरे की छाया

मंगल अग्नि और साहस का ग्रह है। अनिष्ट स्थिति में आग से खतरा, चोट-चोट, दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं। व्यक्ति चिड़चिड़ा, क्रोधी और आक्रामक हो जाता है, जो वैवाहिक कलह, पारिवारिक झगड़ों और कानूनी विवादों का कारण बनता है।

बुध की कमजोरी- बुद्धि का मंदन

बुध बौद्धिक क्षमता का स्वामी है। जन्मपत्री में कमजोर होने पर स्मृति लघु हो जाती है, समझने और निर्णय लेने की गति धीमी पड़ जाती है। इससे पढ़ाई, व्यापार या संवाद में बाधाएं आती हैं, और व्यक्ति भ्रमित महसूस करता है।

गुरु के अनिष्ट प्रभाव- ज्ञान और सौभाग्य की कमी

गुरु विस्तार और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। प्रतिकूल स्थिति में लीवर संबंधी रोग, बुजुर्गों या गुरुओं से वैरभाव उत्पन्न होता है। विवाह में देरी, सामाजिक प्रतिष्ठा में ह्रास और सौभाग्य की कमी से जीवन में असंतोष बढ़ता है।

शुक्र के दूषित प्रभाव- सुख-भोग का ह्रास

शुक्र सौंदर्य, प्रेम और भोग का कारक है। कमजोरी से वैवाहिक जीवन में तनाव, शारीरिक आकर्षण में कमी और प्रजनन संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। जीवनसाथी से मतभेद बढ़ते हैं, तथा भौतिक सुख-सुविधाओं में कमी आती है।

शनि के प्रतिकूल प्रभाव- कर्मफल की कठोर परीक्षा

शनि कर्म, धैर्य और कठिनाइयों का ग्रह है। अनिष्ट स्थिति में हड्डी, नस, जोड़ों और तंत्रिका तंत्र के रोग उभरते हैं। जीवन में संघर्ष, सफलता में विलंब और मानसिक दबाव बढ़ता है, जो शनिदेव की कठोर परीक्षा के रूप में प्रकट होता है।

राहु के छाया प्रभाव- भ्रम और तनाव का जाल

छाया ग्रह राहु माया और भ्रम का प्रतीक है। खराब स्थिति में माइग्रेन, मानसिक तनाव, भ्रमपूर्ण निर्णय और शारीरिक अस्वस्थता होती है। व्यक्ति अज्ञात भय और अप्रत्याशित परेशानियों से जूझता रहता है।

केतु के अनिष्ट प्रभाव- अलगाव और आकस्मिक संकट

केतु मोक्ष और वैराग्य का ग्रह है। दूषित होने पर अकेलापन, रिश्तों में दरार, संतान से कष्ट और आकस्मिक चोटें संभव हैं। व्यक्ति आध्यात्मिक खोज में भटकता है, लेकिन सांसारिक बंधनों से पीड़ित रहता है। ज्योतिषीय उपायों जैसे मंत्र जाप, दान और रत्न धारण से इन प्रभावों को कम किया जा सकता है। अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाकर सकारात्मक बदलाव लाएं।

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