पटना, 30 अक्टूबर 2025। Bihar Elections: बिहार की राजनीतिक दहलीज पर एक बार फिर तेजस्वी यादव की नजरें टिकी हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में महज चार प्रतिशत वोटों के फासले से सत्ता की चौखट चूमने से चूक गए तेजस्वी अब उसी कमी को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश के सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सिद्ध फॉर्मूले को अपना चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में अखिलेश ने जिस ‘एम-वाई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को मजबूत करते हुए गैर-यादव ओबीसी वोटों को साधा था, उसी की नकल तेजस्वी बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में कर रहे हैं।
यह दांव 20 साल के सत्ता-वनवास को समाप्त करने का बड़ा हथियार साबित हो सकता है। तेजस्वी, जो बिहार के सबसे बड़े वोट बैंक यादव समाज (लगभग 15%) से ताल्लुक रखते हैं, ने महागठबंधन में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए चतुर सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया है। महागठबंधन ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया तो वीआईपी नेता मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का टैग देकर निषाद-मल्लाह समाज (करीब 5.5%) को लुभाया।
सहनी, जो ‘सन ऑफ मल्लाह’ के रूप में अपनी पहचान बनाए रखते हैं, ने लंबे समय से अपनी जाति को एससी में शामिल करने की मांग उठाई है, जिसके दम पर उन्होंने गठबंधन में 15 सीटें हासिल कीं। यह रणनीति एनडीए के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास है, जहां निषाद समाज उत्तर और उत्तर-पश्चिम बिहार के 30 विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाता है।
अखिलेश फॉर्मूला की तर्ज पर तेजस्वी ने कुशवाहा (कोइरी) समाज पर भी बड़ा दांव लगाया है। ओबीसी में यादव के बाद दूसरा सबसे बड़ा समुदाय कुशवाहा (4.21%) नीतीश कुमार की सत्ता की धुरी रहा है, लेकिन अब तेजस्वी ने लोकसभा चुनाव के सफल प्रयोग को दोहराते हुए एक दर्जन से अधिक कुशवाहा उम्मीदवार उतारे हैं। यह कदम 20-25 सीटों पर हार-जीत का फैसला कर सकता है।
महागठबंधन की कुल 243 सीटों में आरजेडी को 143, कांग्रेस को 61, सहनी को 15 और वाम दलों को शेष मिली हैं। टिकट वितरण में आरजेडी ने 51 यादव, 19 मुस्लिम, 16 कुशवाहा, 4 निषाद और 11 अति पिछड़ा उम्मीदवार चुने। कांग्रेस ने सवर्ण (21), अति पिछड़ा (7) और दलित (11) पर फोकस किया, जबकि माले ने ‘जिसकी उतनी भागीदारी’ के सिद्धांत पर धानुक-तेली जैसे समुदायों को तरजीह दी।
यह फॉर्मूला बिहार की 63% पिछड़ी-अति पिछड़ी, 19.65% दलित और 17.7% मुस्लिम आबादी को एकजुट करने का प्रयास है। 2020 में एनडीए को 41% और महागठबंधन को 37% वोट मिले थे। तेजस्वी का लक्ष्य 5-10% ओबीसी वोटों का टूटना है, जो सीन बदल सकता है। अखिलेश की तरह तेजस्वी भी सहयोगियों को भरोसा दिला रहे हैं कि सत्ता में अन्य समाजों को भी डिप्टी सीएम का पद मिलेगा। क्या यह दांव बिहार की सियासत को नया मोड़ देगा? आने वाले चुनाव इसका फैसला करेंगे।
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