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अखिलेश यादव के ‘फिजूलखर्ची’ वाले बयान पर फूटा राम भक्तों का गुस्सा, कहा- सपा के हाथ खून से रंगे हैं

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Akhilesh Yadav's statement

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लखनऊ 22 अक्टूबर 2025। उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर ध्रुवीकरण का दौर शुरू हो गया है। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दीपावली और अयोध्या के दीपोत्सव पर दीयों-मोमबत्तियों को ‘फिजूलखर्ची’ बताते हुए विवादास्पद बयान दिया, जिससे सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में हंगामा मच गया। लोगों ने सपा पर राम भक्तों के खून से हाथ रंगे होने का तीखा आरोप लगाया, जो 1990 के कारसेवकों पर गोलीकांड की याद दिला रहा है।

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यह बयान न केवल हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला माना जा रहा है, बल्कि सपा की छवि को भी नुकसान पहुंचा रहा है। अखिलेश का बयान सैफई में एक सभा के दौरान आया। उन्होंने कहा, “देखिए, पूरी दुनिया में क्रिसमस पर एक ही बार मोमबत्तियां जलाते हैं, लेकिन हम बार-बार दीये-मोमबत्तियां क्यों जलाते हैं? यह फिजूलखर्ची क्यों?” उनका इशारा अयोध्या के भव्य दीपोत्सव की ओर था, जहां हर साल सैकड़ों दीये जलाकर राम मंदिर का स्वागत किया जाता है।

अखिलेश ने आगे जोड़ा कि त्योहारों पर होने वाले अनावश्यक खर्च को रोकना चाहिए और पश्चिमी परंपराओं से सीख लेनी चाहिए। यह टिप्पणी आते ही वायरल हो गई, और सोशल मीडिया पर #BoycottSP जैसे ट्रेंड होने लगा। अयोध्या के राम भक्तों और भाजपा समर्थकों ने इसे राम मंदिर आंदोलन का अपमान बताया। पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी नेताओं ने कहा कि सपा हमेशा से हिंदू त्योहारों को निशाना बनाती रही है।

एक भाजपा नेता ने ट्वीट किया, “अखिलेश जी, दीये जलाना फिजूलखर्ची है तो राम भक्तों का बलिदान क्या था? सपा के हाथ आज भी कारसेवकों के खून से सने हैं!” सोशल मीडिया पर हजारों यूजर्स ने अखिलेश को ‘राम-विरोधी’ करार दिया। एक यूजर ने लिखा, “दिवाली का प्रकाश बुझाने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन राम का दीप कभी नहीं बुझेगा। “यह विवाद सपा की 2027 विधानसभा चुनाव की रणनीति पर भी सवाल खड़े कर रहा है।

अखिलेश ने हाल ही में सैफई में कार्यकर्ताओं को संदेश दिया था कि 2027 का चुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति का भविष्य तय करेगा। लेकिन यह बयान अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की पुरानी छवि को मजबूत कर रहा है। विपक्षी दलों ने इसे ‘वोट बैंक पॉलिटिक्स’ का हिस्सा बताया। वहीं, सपा प्रवक्ता ने सफाई दी कि अखिलेश का इशारा सरकारी खर्च पर था, न कि धार्मिक परंपराओं पर। उन्होंने कहा, “यह विकास और किफायत की बात है, न कि भावनाओं की।”अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद दीपोत्सव वैश्विक स्तर पर चर्चित हो चुका है।

पिछले साल यहां 17 लाख दीये जलाए गए थे, जो पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। अखिलेश का बयान ऐसे समय आया जब दिवाली 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है, जो राम भक्ति को अपनी चुनावी पूंजी बनाती है। सपा को अब अपनी छवि सुधारने की चुनौती है, वरना राम भक्तों का गुस्सा 2027 में महंगा पड़ सकता है। कुल मिलाकर, एक साधारण टिप्पणी ने सियासी जंग को भड़का दिया, जो त्योहार के प्रकाश को राजनीतिक छाया में बदल रही है।

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