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Chhath Puja 2025: पीतल के बर्तनों का छठ महापर्व से गहरा नाता, शास्त्रों में छिपा है रहस्य

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Chhath Puja 2025

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Chhath Puja 2025: छठ पूजा 2025 का महापर्व आगमन कर रहा है, जो 25 अक्टूबर से शुरू होगा। पहला दिन ‘नहाय खाय’ (25 अक्टूबर), दूसरा ‘खरना’ (26 अक्टूबर), तीसरा ‘संध्या अर्घ्य’ (27 अक्टूबर) और चौथा ‘उषा अर्घ्य’ व ‘परान’ (28 अक्टूबर) होगा। यह पर्व सूर्यदेव और छठी मां की आराधना का प्रतीक है, जहां शुद्धता और प्रकृति पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान पीतल के बर्तनों का उपयोग अनिवार्य माना जाता है, जो न केवल परंपरा का हिस्सा है बल्कि शास्त्रों में भी इसका गहन महत्व वर्णित है।

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छठ पूजा में व्रती महिलाएं पीतल के सूप, कलश, थाली और दाउरा का इस्तेमाल करती हैं। इसका मुख्य कारण शुद्धता है। पीतल तांबा और जस्ता का मिश्रण होने से रोगाणुनाशक गुणों से भरपूर होता है, जो जल को लंबे समय तक शुद्ध रखता है। छठ व्रत में शुद्ध भोजन और अर्घ्य के लिए यह बर्तन आदर्श है। हनुमान मंदिर के महंत सुमन बाबा के अनुसार, पीतल को पूजा में शुभ माना जाता है क्योंकि इसका पीला रंग सूर्य भगवान का प्रतीक है।

Chhath Puja 2025

व्रती इन्हें सूर्य को प्रसन्न करने के लिए उपयोग करते हैं, जिससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शास्त्रों में पीतल का संबंध बृहस्पति ग्रह से बताया गया है। स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि पीतल के बर्तनों से पूजा करने पर पुण्य प्राप्ति होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो, तो पीतल के बर्तन से अर्घ्य देने से ग्रह मजबूत होता है। यह धातु नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मक स्पंदन उत्पन्न करती है, जो वातावरण को शुद्ध बनाती है।

आयुर्वेद में भी पीतल के जल को पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला माना गया है। परंपरा के अनुसार, छठ में ठेकुआ, फल और जल को पीतल के सूप में रखकर अर्घ्य चढ़ाया जाता है। प्राचीन काल से चली आ रही यह रीति लोक आस्था का अभिन्न अंग है। बाजारों में छठ पर पीतल के बर्तनों की मांग चरम पर पहुंच जाती है। वैज्ञानिक शोध भी पुष्टि करते हैं कि पीतल के बर्तन बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं, जो शुद्धता पर जोर देने वाले छठ के लिए उपयुक्त है।

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2025 में छठ पूजा के दौरान पीतल के बर्तनों का उपयोग न केवल धार्मिक कर्तव्य है बल्कि स्वास्थ्य और समृद्धि का स्रोत भी। व्रती इसे अपनाकर सूर्यदेव की कृपा पाएं, ताकि परिवार में सुख-शांति बनी रहे। यह परंपरा हमारी सांस्कृतिक धरोहर को मजबूत करती है, जहां प्रकृति और आस्था का संगम होता है।

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