मुजफ्फराबाद/कोटली, 29 सितंबर 2025। पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेक) में आर्थिक संकट और शोषण के खिलाफ जनाक्रोश चरम पर पहुंच गया है। संयुक्त अवामी एक्शन कमिटी (जेएके जेएसी) के नेतृत्व में चल रहे व्यापक प्रदर्शनों ने पूरे इलाके को ठप कर दिया है। मुजफ्फराबाद, कोटली, मीरपुर और अन्य शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस फायरिंग में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और 22 से अधिक घायल हो गए। यह घटना पाकिस्तानी शासन के खिलाफ बढ़ते असंतोष की गहरी पड़ताल करती है, जहां स्थानीय निवासी दशकों से आर्थिक शोषण और राजनीतिक दमन का शिकार हो रहे हैं।
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प्रदर्शन की शुरुआत जेएके जेएसी की ओर से बुलाए गए पूर्ण हड़ताल और व्हील-जाम से हुई। प्रदर्शनकारियों ने आटा की सब्सिडी बहाली, बिजली टैरिफ में कमी, जलविद्युत परियोजनाओं से राजस्व का निष्पक्ष हिस्सा और राजनीतिक सुधारों की मांग की। विशेष रूप से, मंगला जलविद्युत परियोजना से उत्पन्न ऊर्जा के बावजूद, पीओजेक के निवासियों को ऊंचे बिजली बिलों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, पाकिस्तानी शासक वर्ग के विशेषाधिकारों को समाप्त करने, कश्मीरी शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 विधायी सीटों को हटाने और छात्र संघों के लोकतांत्रिकीकरण की मांगें भी प्रमुख हैं।
गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में भी समान असंतोष देखा जा रहा है, जहां चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के बावजूद स्थानीय संसाधनों का दोहन हो रहा है।हिंसा तब भड़की जब मुजफ्फराबाद में शांतिपूर्ण मार्च के दौरान पुलिस ने आंसू गैस और रबर बुलेट का सहारा लिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कोटली और मीरपुर में पथराव और लाठीचार्ज हुआ, जिसमें महिलाएं और युवा अग्रिम मोर्चे पर थे। मरने वालों में एक युवा छात्र और एक स्थानीय व्यापारी शामिल हैं, जिनकी मौत ने आक्रोश को और भड़का दिया। जेएके जेएसी के नेता राजा खुर्शीद ने कहा, “पाकिस्तान ने हमें गुलाम बना रखा है। हमारे संसाधन चुराए जाते हैं, लेकिन विकास का नामोनिशान नहीं।
आज का बलिदान स्वतंत्रता की दिशा में कदम है।”यह प्रदर्शन पाकिस्तान की आर्थिक मंदी का प्रतिबिंब है, जहां महंगाई, बेरोजगारी और खाद्यान्न संकट ने आम आदमी को तोड़ दिया है। पीओजेक, जो भारत का अभिन्न हिस्सा है, पाकिस्तानी सेना के कब्जे में दशकों से पीड़ित रहा। 1947 के कबायली हमले के बाद से यहां मानवाधिकार उल्लंघन और सांस्कृतिक दमन जारी है। हाल के वर्षों में गिलगित-बाल्टिस्तान में भी इसी तरह के आंदोलन हुए, जहां लोग भारत के साथ एकीकरण की मांग कर चुके हैं। भारतीय राजनीतिक हलकों में इस घटना को पीओजेक की आजादी का सुनहरा अवसर माना जा रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि पीओजेक भारत का है और इसे वापस लिया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठन इन प्रदर्शनों पर नजर रखे हुए हैं। पाकिस्तान ने घटना को ‘आंतरिक मामला’ बताकर दबाने की कोशिश की, लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो सच्चाई उजागर कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी अब अनिश्चितकालीन धरना देने की चेतावनी दे रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं।पीओजेक के निवासी लंबे समय से न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह हिंसक टकराव न केवल पाकिस्तानी शासन की विफलता दर्शाता है, बल्कि स्वतंत्रता की आस की किरण भी जगाता है। यदि मांगें पूरी न हुईं, तो आंदोलन और तेज हो सकता है, जो दक्षिण एशिया की राजनीति को नया मोड़ दे सकता है।
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